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बीते साल के ख़ुशनुमा लम्हे

 

एकांत के क्षणों में गुफ़्तुगू हो गयी, 
इक जाते हुए राही ने दास्तान सुना दी! 
माना कि आज मैं बूढ़ा हो गया हूँ, 
तुम्हें दूर उगता नूतन भास्कर दिख रहा, 
बीते साल के ख़ुशनुमा लम्हें क्यों भूल गए!! 
मेरे जीवन का वानप्रस्थ चल रहा, 
मुस्कराकर, गीत गाते हुए, नाचते विदा करना, 
मैं वही तुम्हारा सखा, गुज़रता हुआ वर्ष हूँ! 
मुड़कर इक बार नज़र ज़रूर पलटना, 
ख़ुशियों के हज़ारों पलों के दीदार कराऊँगा!! 
इस वर्ष की अन्तिम सीढ़ी पर, 
काँपते हुए बैठा तुमसे कविता लिखवाऊँगा, 
फिर चुपके से तुम्हें तुम्हारे अंतर्मन की पोटली, 
कहानियों, कविताओं की खोल जाऊँगा! 
जाते हुए राही की मासूम सी दास्तान पढ़ते जाना, 
मेरे सखा, दो हज़ार तेइस, मेरी झोली के इंद्रधनुष, 
जिनको रोशन तुम कर जाओगे, धन्यवाद करेंगे, 
अश्रुपूरित निगाहों से विदाई में नाचते गाते!! 
राही ने भावुक हो सुनाई अपनी बात, 
बिछड़ना मिलना रीत है ज़माने की, 
वादा करो, हमेशा तुम मुझे याद करोगी, 
मुझे पता है, जब भी “परिसीमा के परे“
हाथों में स्पर्श करोगी, मैं दो हज़ार तेइस, 
तुम्हें याद आऊँगा, आशीर्वाद दूँगा, हर वर्ष, 
इक नया भाग्य का सूरज उगे, चाँदनी बिखरे, 
जाते जाते इक़ नया ख़ूबसूरत सखा, 
उपहार में दे जाऊँगा दो हज़ार चौबीस!! 

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