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सेरोगेट मदर

डॉक्टर प्रतिभा के क्लिनिक में चपरासी और नर्स मिलकर एक महिला को पकड़कर अंदर ला रहे थे और वो ज़ोर से चिल्ला रही थी, "ढूँढ़ो, ढूँढ़ो कहीं से भी लाओ मेरी बेटी को।”

प्रतिभा ने कुर्सी पर बिठाया, साथ में एक सज्जन भी थे। 

ये मिस्टर बासु थे, बताया, "घर में हम दोनों ही हैं, मैं एक कंपनी में जनरल मैनेजर था। कुछ वर्षों से कभी-कभी मेरी पत्नी भावना को दौरे पड़ते हैं और पूरे दिन ये चिल्लाते रहती है, सँभालना मुश्किल पड़ता है।”

उसी समय जैसे ही सबने कुर्सी में बैठाया, सबकी पकड़ ढीली होते ही, भावना पलक झपकते उठकर डॉ. प्रतिभा के पास आ गयी और उसको पकड़कर ख़ुशी से कूदने लगी, मिल गयी देखो, मिल गयी और गुनगुनाने लगी, ’मेरे घर आई एक नन्ही परी’। 

उसके बाद थोड़ी देर सन्नाटा सा छा गया, क्योंकि वहाँ एक इज़्ज़तदार, पढ़ी लिखी, भावना शान्ति से कुर्सी पर आँखें बंद किये आराम कर रही थी। 

डॉ. ने नर्स को कहा, "इन्हें 210 रूम में लिटा दो, इन्हें इंजेक्शन देना है, तैयारी करो।”

रात को घर आकर अपनी मम्मी एलिसा से मिलते ही अस्पताल की वो पेशेंट का हाल बताया और ये भी कहा, "मम्मी, पता नहीं क्यों उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा तो मुझे आपकी झलक मिली।”

एक सेकंड को एलिसा भी असमंजस में पड़ गयी फिर विचारों को झटक कर एलिसा ने प्रतिभा को गले लगाया, "इतना भावुक होने की जरूरत नहीं, तुम डॉक्टर हो ऐसे लोग आएँगे ही।”

दूसरे दिन डॉ. अस्पताल पहुँची तो भावना कमरे में फिर उठा-पटक कर रही थी। आज उनके श्रीमान जी से डॉ. प्रतिभा ने पूरी हिस्ट्री जाननी चाही। 

बोले, "हमारी शादी के बाद हम दोनों जॉब में थे, मुम्बई में व्यस्त रहते थे, दोनों के पास समय नहीं था। भावना को बच्चों से बहुत लगाव था, पर डॉ. ने उसे बहुत कमज़ोर बताया। फिर हमने सेरोगेसी प्लान से ही एक बच्चे की इच्छा पूरी करने की सोची। उस समय समाज मे ये सब खुल्लम-खुल्ला नहीं होता था। हम केरल गए, डॉ. ने ही एक महिला से बात कराई, पाँच लाख देकर नौ महीने हमारे बच्चे को उन्होंने कोख में रखा। 

“उस समय की एक और त्रासदी थी, लोग लड़कियों के जन्म पर ख़ुश नहीं होते थे। और हम दोनों लड़के की उम्मीद लगाए सपने बुनते रहे।

“फिर एक दिन अस्पताल से डॉ. का फ़ोन आया, ’बेटी हुई है’।

“दूसरे दिन ही ऑफ़िस के काम से अमेरिका जाना पड़ा। धीरे-धीरे समय गुज़रा, भावना को मनाया हम फिर सरोगेसी कराएँगे, पर लड़की नहीं लेंगे। अब बुढ़ापे में दोनों उस छोटी सी प्यारी-सी बच्ची को याद करते हैं, भावना का पागलपन दिख जाता है, मेरी बेबाकी ड्रिंक्स की बोतल में भर जाती है।”

सारी कहानी जानकर डॉ. प्रतिभा हतप्रभ रह गयी, और कहा, "बहुत बुरा किया, जैसी करनी वैसी भरनी।”

घर में एलिसा भी अकेले में परेशान हो रही थी, ये कौन सी पेशेंट है, जिसको देखकर प्रतिभा भावुक हो रही है, मुझे जानना ही पड़ेगा। 

आज का लंच लेकर ड्राइवर के साथ हॉस्पिटल पहुँची और नर्स से पूछकर उस पेशेंट भावना के कमरे में गयी। वो सो रही थी, नज़र पड़ते ही उल्टे क़दम वापस लौटी और प्रतिभा से मिले बिना ही घर आ गई। 

इसके बाद एलिसा हमेशा परेशान रहने लगी और एक दिन भावुकता में एक निर्णय ले लिया। केरल में आज भी उसके भाई रहते थे। एक ई-मेल प्रतिभा के नाम लिखकर उससे दूर जाने को तैयार हो गयी और चल दी। 

जैसे ही अस्पताल में प्रतिभा को समय मिला उसने आश्चर्यजनक ई-मेल देखी और पढ़ना शुरू किया . . . 

“किस मुँह से बताऊँ, दिल तो नहीं मानता पर सत्य ये है कि मैं तुम्हारी सेरोगेट मदर हूँ। विश्वास करो, शायद कभी नहीं बताती क्यों तुम मेरा अस्तित्व बन चुकी हो। पर एक महिला होकर महिला के मातृत्व से खेलना मेरा दिल कचोट रहा है। माफ़ करना बेटी। मुझे इस जनरल मैनेजर के परिवार ने असमंजस में डाला था, कैसे समाज को बताऊँ समझ नहीं आ रहा था, पर जीती-जागती कोमल, सुंदर-सी, प्यारी-सी बच्ची का हाथ मैं नहीं छुड़ा पायी। आज महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा पुरस्कार है कि कोर्ट ने इसे क़ानूनन सही बताया।” 

डॉ. प्रतिभा के सामने टिश्यू पेपर जमा हो रहे थे, और आँखें थीं कि सागर को भी मात दे रहीं थीं। 

और वो बड़बड़ाने लगी, "एलिसा मम्मी, आप कहीं नहीं जाओगी, मैं आपको अपने ही आस पास रखूँगी।” 

सबसे पहले मन की भावनाओं को क़ाबू करके प्रतिभा पेशेंट से मिलने गयी। भावना सो रही थी, ध्यान से देखा तो अपना ही अक्स नज़र आया, उनके सर पे हाथ फेरने लगी और गले लगकर कहा, "तुम भी मेरी माँ की ही तरह हो।”

बिना इंजेक्शन, दवाई के भावना दो दिन में ठीक हो गयी। प्रतिभा ने रिटायर्ड जनरल मैनेजर को बुलाकर कहा, "आपने बरसों पहले एक ग़लत काम किया, उसका ख़ामियाज़ा आपको भुगतना पड़ रहा है। आप बड़े लोग सिर्फ़ पैसे से दुनिया को तौलते रहे क्या आपको पता है, औरत अपनी कोख में दूसरे का बच्चा पालती है, वो सरोगेट मदर भावनात्मक रूप से कितना कुछ सहती है। भावना जी की तबियत के कारण मैं भी भावुक हो गयी, पर आपको मैं कभी माफ़ नहीं करूँगी। 

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