अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

सपूत आज भी हैं . . . 

 

रवीना अस्पताल के बिस्तर पर लेटी थी। दो दिन पहले इतना तेज़ दर्द पेट में उठा कि उसे समझ में ही नहीं आया कि उसे क्या हो रहा है। एक महीने से हल्का दर्द होता था, पर वह गैस की परेशानी सोचकर अजवाइन फाँक लेती। इस बार के दर्द के बाद वर्मा साहब और अमर उसे जल्दी से कार में बिठाकर एस्टर हॉस्पिटल ले आये। 

उस दिन जल्दी में जो टेस्ट हो सकते थे, हुए, डॉक्टर ने दवाइयों का पुलिंदा पकड़ा दिया और कई सारे टेस्ट के नाम लिख दिए कि कल फिर आइयेगा। 

रवीना सबके साथ घर आ गयी। दूसरे दिन ही ईमेल से सब रिपोर्ट आ गयी, सबकुछ तो समझ नहीं आ रहा था, पर कुछ मालूम पड़ रहा था, लिवर ख़राब हो रहा, डॉक्टर ने मिलने के लिए बुलाया है। 

रवीना को दुनिया में सबसे ख़राब जगह अस्पताल लगती थी, जहाँ फिर जाना पड़ा। डॉक्टर ने अपने केबिन में बुलाकर वर्मा साहब को रिपोर्ट के बारे में सब जानकारियाँ दी। डॉक्टर का कहना था, लिवर बिल्कुल ख़राब हो चुका है, लास्ट स्टेज में है, एक महीने के अंदर लिवर ट्रांसप्लांट की ज़रूरत है। वर्मा जी को चक्कर आने लगे, वह भी हाई बीपी के मरीज़ थे, डॉक्टर ने पूछा, “बेटे का फोन नंबर बताइये।” और फिर अमर बेटे और अक्षरा बहू को भी बुलाया गया। सारी स्थिति की जानकारी देते हुए डॉक्टर ने कहा, “जल्दी तय करिएगा, क्या करना है, समय कम है।” 

रवीना अस्पताल में भर्ती हो गयी थी। वर्मा जी और बेटे बहू घर आ गए थे। माहौल चिंताजनक था, वर्मा जी बार-बार बिलख पड़ते थे, अमर का हाथ पकड़ कर बोलते, अब क्या होगा बेटा, रवीना को कुछ हो गया, तो मैं कैसे जीऊँगा। पैंतीस वर्षों से वह मेंरी साँसों में धड़कती है। लिवर ट्रांसप्लांट करने में तो लाखों का ख़र्च आएगा। मैं पेंशनर हूँ और सब रक़म इस महल को बनाने में लगा चुका हूँ। 

“पापा, अजीब बातें करते हो, आप आराम से रहिये, मुझ पर और अक्षरा पर भरोसा रखिये, मम्मी को हम कुछ नहीं होने देंगे। कल सुबह डॉक्टर से मुझे कई बातें पूछनी हैं।”

वर्मा जी बहुत ज़्यादा पूजा पाठ नहीं करते थे, कभी मंदिर नहीं जाते थे। हमेशा मज़ाक़ करते थे, “ये डिपार्टमेंट रवीना का है, वही जाने!” और उस रात वह घर के मंदिर में जाकर रात में ही दीया जलाकर देवी जी के सामने हाथ जोड़कर घर की देवी की सलामती की प्रार्थना में लगे थे। बारह बजे अक्षरा आकर बोली, “पापा इतना परेशान मत होइए, आपकी भी तबियत बिगड़ जाएगी, आप सो जाइये, ईश्वर कुछ रास्ता ज़रूर दिखाएँगे।” 

सुबह फिर नाश्ते के बाद सब हॉस्पिटल गए, डॉक्टर से अमर ने पूर्ण विवरण लिया, कितना ख़र्च आएगा। डॉक्टर के अनुसार सब मिलाकर चालीस लाख लग सकते हैं। फिर अमर ने वर्मा जी को रवीना के पास बैठाकर बातें करने के लिए कहा। डॉक्टर से पूछा, “ये बताइये मैं अभी पैंतीस वर्ष का हूँ, मैंने पत्नी को बता दिया है, पर पापा को नहीं बताना चाहता। क्या मैं अपनी मम्मी को लिवर दे सकता हूँ?” और डॉक्टर के अनुसार यह सबसे बढ़िया ऑप्शन (विकल्प) था। इसके बाद ही सारी प्रक्रिया चलने लगी। अमर ने एक प्लाट ख़रीद रखा था, उसको बेचकर पैसों के इंतज़ाम किया। फिर दस दिन तक कई टेस्ट हुए, दवाइयाँ चलीं, बीच में दो दिन रवीना को कोई इन्फ़ेक्शन हो गया, इस कारण ऑपरेशन रुक गया। सब क्रियाएँ चल रही थीं, पर लिवर कौन दे रहा, ये वर्मा जी को नहीं बताया गया। घर और अस्पताल के चक्कर लगते रहे। 

अंत में जिस दिन ऑपरेशन हुआ, वर्मा जी को डॉक्टर ने हिदायत दी, आप घर में रहें, आपको हर मिनट की सूचना दी जाएगी। 

रवीना का लिवर ट्रांसप्लांट का ऑपरेशन सफल रहा, सब की जान में जान आयी। अमर को भी अस्पताल में दो दिन रहना पड़ा। तब जाकर वर्मा जी को ख़बर लगी और वह बहुत नाराज़ हुए, मुझे क्यों नहीं बताया। इतना बड़ा डिसिज़न अकेले ले लिया, बहू अक्षरा ने भी सब शालीनता से मान लिया। 

आज रवीना अस्पताल से घर आ गयी, बहू बेटे ने फूलों से स्वागत किया, घर को भी फूलों से सजाया गया था। और वर्मा जी रवीना और पड़ोसियों को बता रहे थे, “तुमने देखा आज भी श्रवण कुमार होते हैं, और वैसी ही उनकी पत्नी भी सबको मानने वाली होती है।”

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

......गिलहरी
|

सारे बच्चों से आगे न दौड़ो तो आँखों के सामने…

...और सत्संग चलता रहा
|

"संत सतगुरु इस धरती पर भगवान हैं। वे…

 जिज्ञासा
|

सुबह-सुबह अख़बार खोलते ही निधन वाले कालम…

 बेशर्म
|

थियेटर से बाहर निकलते ही, पूर्णिमा की नज़र…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कहानी

कविता

लघुकथा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं