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साँवला रंग

दरवाज़े पर कॉल बेल बज रही थी, जाकर रीना ने जल्दी से दरवाज़ा खोला। 

सामने महिमा पुलिस की वर्दी पहने खड़ी थी, आईपीएस का बैज लगाए। आज उसको पहली बार वर्दी में उसकी आँखें भर आयीं। 

रीना ने ख़ुश होकर कहा, “वाह, तुम्हें यूँ देखकर मैं प्रसन्न हो गयी। सरप्राइज़ विज़िट; घर में सब ठीक है।”

“कल ही आयी हूँ, होली मम्मी-पापा के साथ मनाने आये हैं हम लोग।”

“बैठो, अभी मैंने गर्म गुझिया बनाई हैं, तुम्हें खिलाती हूँ।”

थोड़ी देर में महिमा चली गयी और रीना के मन में अतीत के रंग बिखेर गयी। 

बचपन से उसने बहुत तिरस्कार सहा था, पर ईश्वर की लीला अपरंपार है, वो जानता है, मनुष्य की रचना में बैलेंस कैसे करना है। उसने रीना को बहुत तीक्ष्ण बुद्धि की बनाया और वो स्नातक के बाद ही गणित की शिक्षिका बन गयी। उसके माँ, पापा रिश्तों के लिए कई वर्ष परेशान रहे। कई जगह बात चली, पर हर जगह लोगों की निगाहों में बॉलीवुड की सुंदरता भर चुकी थी। सबको गोरी बहू ही चाहिए, चाहे लड़का बिल्कुल काला मोटा हो। एक समय ऐसा भी आया कि रीना ने अपने माँ-पापा से बोला, “मैं बहुत ख़ुश हूँ, स्कूल के बच्चों को गणित के इक्वेशन समझाते हुए। अब जीवन में कोई एक्स, वायी, ज़ेड की महिमा न जानने की कोशिश करे।” ये दुनिया है, ईश्वर के रचित रंगरूप को कोई कैसे बदल सकता है, हाँ, व्यक्तित्व में चार चाँद ज़रूर लगा सकते हैं। 

शायद ईश्वर सबका जोड़ा बनाता है। एक दिन उसके पापा ने शादी डॉट कॉम से एक लड़के को चुना। उनका परिवार रीना के घर चाय पीने आने वाला था। सुबह से घर में तैयारी चल रही थी, पर्दे बदलो, कुशन बदलो, मम्मी ने दही बड़े, रसगुल्ले सब बना लिए और पास से रीना की ताईजी और बुआ को भी बुला लिया। 

ताईजी आते ही रीना को समझाने बैठ गयीं—बढ़िया सी साड़ी पहन ले, कान का झुमका, पायल सब पहनना, तेरा रंग साँवला है, इसलिए मेकअप बढ़िया करना। और रीना को हमेशा से सजना-धजना अच्छा नहीं लगता था। तभी ताईजी बुआ की लड़की करिश्मा से बोलीं, “सुन बेटा, तू आ तो गयी है, पर उस समय पीछे वाले कमरे से निकलना नहीं, पता नहीं, तेरी सुंदरता पर ही लोग न रीझ जाएँ, और कहें, हमें तो यही पसंद है।” एक के बाद एक तिरस्कार वाले वाक्यों से रीना का दिल छलनी हो रहा था, कोई भी उसके गुण की बात नहीं कर रहा था। 

और शाम को लड़के अमित के घर वाले आ गए। लड़के का रंग टक्कर का ही था थोड़ा बीस ही होगा रीना से . . .

लेन-देन की भी बात हुई। तभी अमित की आठवीं में पढ़ने वाली बहन बोल उठी, “अरे वाह, ये दीदी हमारे स्कूल में गणित पढ़ाती हैं, बहुत अच्छा होगा जो मेरी भाभी बन जाये।”

और अमित की मम्मी ने इशारे से बेटी से कहा, चुप रहो। 

अमित ने कहा, “आप लोगों ने पहले नहीं बताया कि ये जॉब भी करती हैं।” 

“हाँ जी, हमने सोचा, पता नहीं आप लोग पसंद करेंगे या नहीं।”

“अरे, बढ़िया है, पर ये समझा दीजिएगा, नौकरी करें पर घर की ज़िम्मेदारी भी पूरी करनी पड़ेगी।”

रिश्ता पक्का हो गया। 

रीना की शादी हो गयी। 

साल भर बाद ही वो अस्पताल में थी, डॉक्टर ने उसको होश आने पर बताया, “लक्ष्मी आई है, झूले में सो रही है।”

जल्दी से रीना ने उत्सुकता से पूछा, “मुझे दिखाइए, गोरी है या साँवली?” 

डॉक्टर ने घूर कर उसे देखा, “ये कैसा सवाल है, वैसे मैं दिखा रही हूँ।”

लड़की साँवली थी, एक माँ अपने जीवन को याद करके दुखी हो रही थी, फिर मन में गाँठ बाँधी, ‘इसको मैं एक सफल मुक़ाम तक पहुँचाऊँगी, जब तक जीवित रहूँगी कोई इसके रंग पर तंज़ न कर पायेगा, इसका कोई तिरस्कार नहीं कर पायेगा।’ 

अब रीना और उसके श्रीमानजी की तीस सालों की मेहनत रंग लाई और उनकी बेटी आज आईपीएस अफ़सर बनकर उनके गर्व का कारण बनी। आज पूरे शहर में चर्चा थी, ये एक पुलिस अफ़सर के मम्मी-पापा हैं, कितने भाग्यवान है। आज कोई भी महिमा के रंग की चर्चा नहीं कर रहा था। 

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