मानवता
कथा साहित्य | लघुकथा भगवती सक्सेना गौड़1 Jan 2022 (अंक: 196, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
रवीना के पैर में 3 महीने का प्लास्टर लगा था शुरू में तो बहुत घबरा गई थी, अकेले में परेशान होकर रो भी लेती थी। पर जीवन भर की कसर, अमर ने इस समय घर सँभालकर पूरी कर दी। और एक शख़्स उसकी मेड पार्वती जिसके ऊपर हमेशा चिल्लाती रहती थी, उसने भी छोटा बड़ा सब काम करके जता दिया कि मुसीबत में कोई भी सहारा बन सकता है। बिना कोई लालच के मालिश करना, नहलाना, कपड़े पहनने में सहायता करना सब पार्वती बिना बोले करती थी। कई क़रीबी रिश्तेदारो को बुलाया था, पर सबने व्यस्तता के बहाना बनाया।
एक दिन रवीना बोल रही थी, “लाल मिर्च बाज़ार में मिल रही है, पर मैं बिस्तर में पड़ी हूँ, क्या करूँ, छोटी बहू को बहुत पसंद है, जब आती है, तारीफ़ करके खाती भी थी और पैक करके ले भी जाती थी। क्या करे बिचारी नौकरीपेशा है, उसके पास समय ही नहीं।”
चार दिन बाद सुबह जब पार्वती आयी, उसके हाथ मे एक बड़े भगोने में लाल मिर्च का अचार ताज़ा बना हुआ था और बोल पड़ी, “भाभी, ये कल ही मैंने आपके लिए बनाया, आप दो दिन पहले इस बारे में बोल रहे थे। वैसे तो मैं आपकी जाति की नहीं हूँ, अगर आपको बुरा लगे, न रखना चाहे तो मैं वापस ले जाऊँगी।”
“अरे, कैसी बातें करती हो, जाओ किचन से बरनी लेकर उसमे रख दो। मैंने कभी जाति प्रथा नहीं मानी, हाँ, सफ़ाई होनी चाहिए। जो मुसीबत में साथ दे, उसकी जाति ’मानवता’ दुनिया की सबसे उम्दा मानती हूँ।”
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