रक्षा बंधन
कथा साहित्य | लघुकथा भगवती सक्सेना गौड़15 Aug 2022 (अंक: 211, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
“कहाँ की तैयारी है, सविता?” रवीना ने घर में घुसते हुए पूछा।
बड़े उत्साह से सविता ने कहा, “बॉर्डर पर जा रही हूँ, डिअर, पता है न कल राखी है।”
और रवीना उसको ध्यान से देखने लगी।
“अरे इतना सोचने की ज़रूरत नहीं है, जानती हूँ तुम सोच में डूबी हो कि भाई कारगिल में शहीद हुए और ये रक्षा बंधन में इतनी मस्त कैसे है?”
“नहीं, सखी, मुझे तुम्हें प्रसन्न देखकर संतुष्टि हो रही है।”
सविता ने कहा, “पहले मैं कई वर्षों तक परेशान रही, राखी के दिन रोती थी। एक बार भैया के दोस्त मेजर अक्षय मिलने आये, उन्होंने फ़ौजी लोगों की स्थितियों के बारे में खुलकर बताया। ‘कई लोगों की इतनी कठिन डयूटी रहती है, कि वो हर त्योहार पर घर जाने को तरसते हैं, कोई बहन, कोई बेटी, कोई बीबी के लिए रो पड़ते हैं, तुम तो घर में परिवार के साथ हो। अपने भाई के अस्तित्व को फ़ौजियों में देखो, उन्हें राखी बाँध कर आओ, मिठाई खिलाओ, तब देखो मन में नया उल्लास जगेगा।’
“और सखी, तब से मैंने दुखी होना छोड़ दिया, हर रक्षा बंधन के दिन अपने श्रीमान जी के साथ बॉर्डर पर जाती हूँ।”
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