साँवला रंग
कथा साहित्य | लघुकथा भगवती सक्सेना गौड़1 Apr 2022 (अंक: 202, प्रथम, 2022 में प्रकाशित)
दरवाज़े पर कोई था, जाकर रीना ने जल्दी से देखा।
सामने महिमा पुलिस की वर्दी पहने खड़ी थी, आई.पी.एस. का बैज लगाए।
रीना ने ख़ुश होकर कहा, “वाह, तुम कब आयी?”
“कल ही आयी हूँ, होली मम्मी पापा के साथ मनाने आयी हूँ।”
“बैठो, अभी मैंने गर्म गुझिया बनाई है, तुम्हें खिलाती हूँ।”
थोड़ी देर में वो चली गयी और मेंरे मन मेंं अतीत के रंग बिखेर गयी।
मेंरी सहेली सीमा साँवले रंग की थी, बचपन से उसने बहुत तिरस्कार सहा था, पर ईश्वर की लीला अपरंपार है, वो जानता है, मनुष्य की रचना में बैलेंस कैसे करना है। उसने सीमा को बहुत तीक्ष्ण बुद्धि की बनाया और वो स्नातक के बाद ही गणित की शिक्षिका बन गयी। उसके माँ, पापा रिश्तों के लिए कई वर्ष परेशान रहे। एकाएक एक सुदर्शन युवक ने रंग को परे कर उसकी विलक्षण बुद्धि को परखा और सीमा की शादी हो गयी।
साल भर बाद ही वो अस्पताल में थी, डॉक्टर ने उसको होश आने पर बताया, “लक्ष्मी आई है, झूले में सो रही है।”
जल्दी से सीमा ने उत्सुकता से पूछा, “मुझे दिखाइए, गोरी है या साँवली?”
डॉक्टर ने घूर कर उसे देखा, “ये कैसा सवाल है, वैसे मैं दिखा रही हूँ।”
लड़की साँवली थी, एक माँ अपने जीवन को याद करके दुखी हो रही थी, फिर मन मेंं गाँठ बाँधी, इसको मैं एक सफल मुक़ाम तक पहुँचाऊँगी, जब तक जीवित रहूँगी कोई इसके रंग पर तंज़ न कर पायेगा।
अब सीमा और उसके श्रीमानजी की तीस सालों की मेहनत रंग लाई और उनकी बेटी आज आई.पी.एस. अफ़सर बनकर उनके गर्व का कारण बनी। आज पूरे शहर मे चर्चा थी, ये एक पुलिस अफ़सर के मम्मी पापा है, कितने भाग्यवान है। आज कोई भी महिमा के रंग की चर्चा नहीं कर रहा था।
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