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परवरिश

डॉ. रवीना अपने मायके जा रही थी। फ़्लाइट के टेक ऑफ़ होते ही उसकी आँखें बन्द होने लगीं, तभी सोचने लगी, पता नहीं पापा की तबियत कैसी है। कल ही उसकी मम्मी का फ़ोन आया, “बेटू, आ जाओ, वीरेन ध्यान नहीं देता, दोस्तों के साथ घूमने में मस्त रहता है। पापा की तबियत ठीक नहीं है।”

और एक भावुक बेटी मम्मी-पापा से मिलने चल पड़ी। चार घंटे की यात्रा और विभिन्न कार्यवाही के बाद घर पहुँची। उसकी मम्मी बाज़ार गयी थी, घर में पापा अकेले बिस्तर पर आँखें बन्द लिए लेटे थे, पैर से लाचार थे, एक महीने से पैर में प्लास्टर के कारण चलने में असमर्थ थे। रवीना को देखकर पापा की अश्रु-धाराएँ अपना वेग रोक नहीं पा रहीं थी, शुगर बढ़ी हुई थी, बुख़ार भी था। 

तभी सब्ज़ी का भारी झोला उठाये, उसकी मम्मी ने प्रवेश किया। उसे देखकर गले लगकर रो पड़ीं। 

“क्यों, मम्मी, आप बाज़ार से इतना भारी झोला लिये सब्ज़ी लेकर आ रहीं, वीरेन कहाँ हैं?” 

“वो दोस्तो के साथ कहीं गया है। रवीना बेटू, झोले से ज़्यादा भारी मन हो रहा है, तुम बैठो तुम्हारे लिए चाय बनाऊँ, फिर बातें होती रहेंगी।”

चाय लेकर माँ-बेटी दिल के हाल एक दूसरे को बताने लगीं। 

“बेटू, दिन रात, इनको सँभालना पड़ता है, रसोई भी जल्दी में जो बन पाता है, कर लेती हूँ। वीरेन से परेशान रहती हूँ, नौकरी करना नहीं चाहता, पहली तारीख़ को पचास हज़ार पेंशन इनकी आ जाती है, उससे मस्त ज़िन्दगी बिताता है, दोस्तों के साथ घूमना, खाना, जुआ खेलने में और किसी का उसको ध्यान नहीं रहता।”

रवीना ने बोल तो दिया, “मम्मी, मैं वीरेन से कहूँगी।”

पर सोच में पड़ गयी कि लाड़-प्यार में मम्मी ने ही उसको बिगाड़ा है। बेटा, बेटी में बचपन से अंतर रखा, पहले से आदत डाली, बेटी चाय पीयेगी, और बेटा सुबह, शाम एक गिलास दूध पियेगा। ये घर का नियम समझ कर रवीना ने कभी सोचा ही नहीं, और मम्मी के साथ चाय पीती रही। आज डॉक्टर बनने के बाद कैल्शियम की गोलियाँ खाती है, पर दूध हज़म नहीं होता। पढ़ाई के लिये भी जब पापा वीरेन को डाँटते तो यही मम्मी लाड़ दिखाती, ‘अरे सब कर लेगा, ज़्यादा पीछे न पड़िये’, वही बेटा आज आवारागर्दी कर रहा, तो क्यों परेशान हैं? पर ये समय नहीं था, अब तो सिर्फ़ उसे अपना कर्तव्य निभाना था। आख़िर उसके आदर्शवादी पापा ने जीवन-भर बेटी का साथ दिया था। साथ ही कोचिंग, होस्टल और पढ़ाई में भी पूर्ण छूट दी थी। 

रात नौ बजे वीरेन आया और दीदी को देखकर सकपका गया, “अरे आपने फ़ोन भी नहीं किया कि आप आयी हैं।”

“भाई, मम्मी-पापा की हालत देखकर बहुत दुखी हूँ, अधेड़ उम्र चालीस पार करने वाले हो, कुछ काम ढूँढ़ो, अभी तो पेंशन मिल रही है, पापा के बाद क्या करोगे?”

तभी दूसरे कमरे से मम्मी की आवाज़ आयी, “रवीना, जल्दी आओ, देखो पापा को क्या हो गया। खाना लेकर आई तो आँखें ऊपर किए पड़े हैं।”

रवीना ने छूकर देखा और बोली, “ओह मम्मी, ग़ज़ब हो गया।”

और थोड़ी देर पहले बोले गए उसके शब्द अपना औचित्य दिखा गये। 

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