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जन्म दिन

मनोहर लाल जी मन ही मन बहुत ख़ुश थे . . .  मेरा जन्मदिन आ रहा है, बच्चे कुछ न कुछ ज़रूर करेंगे। 

देखते ही देखते परसों का दिन भी आ गया, हमेशा की तरह तैयार हो गए, पर सुबह से किसी ने उन्हें मुबारकबाद नहीं दी। मन ही मन यही सोच कर ख़ुश होते रहे कि बच्चे सरप्राईज़ दे रहे हैं ना इसलिए विश नहीं कर रहे। 

दोपहर को सोते हुए उन्होंने कुछ सुना तो था कि बाबू जी को वहाँ ले जाएँगे उन्हें पता नहीं चलेगा, ख़ैर वो चुपचाप रहे। शाम हुई, बच्चे तैयार हुए और बोले, “बाज़ार चलो कुछ काम है आपका भी मन बदल जाएगा।”

वे तो इसी बात का इंतज़ार कर रहे थे उन्होंने 100-100 रुपए के लिफ़ाफ़े बच्चों को बधाई स्वरूप देने के लिए जेब में डाल लिए थे। वो कार में बैठे और बच्चे कुछ सामान डिक्की में रखवा रहे थे . . . बाज़ार ज़रा दूर था। वो सोचते जा रहे थे कि ना जाने कहाँ पार्टी होगी? किस-किस को बुलाया होगा सच आज उनकी पत्नी सविता उनके साथ होती तो कितनी ख़ुश होती। 

तभी उनके पोते ने बोला . . . दादाजी उठिए . . . आँख खुली तो सामने वृद्ध आश्रम था। उनकी साँस वहीं रुक गई। बच्चे कार की डिग्गी से सामान उतार रहे थे। इतने में आश्रम का चौकीदार भागा-भागा आया। और वो सामान ले जाने लगा। बेटा बोला, “ . . . बाबूजी . . . आज आप!!” 

मनोहर बाबू सन्न रह गए। ये कैसा सरप्राईज़ था? तभी पोते ने आवाज़ दी, “दादू उठो!! आप तो सो ही गए थे!”

घबरा कर वो उठे और जान में जान आई कि वो सब सपना ही था। पर शाम को सही में सब उन्हें वहीं ले गए, सामने वृद्धाश्रम का गेट था। 

इस बार वो सपना नहीं था। सच, में उन्हें वहीं लाया गया था। उधर चौकीदार भागता-भागता आया और बोला आपका ही इंतज़ार था। बड़ी मुश्किल से ख़ुद को संयत करके काँपते पैरों से वो भीतर पहुँचे, एक बहुत सरप्राईज़ उनका इंतज़ार कर रहा था। 

उनके जन्मदिन के शुभ अवसर पर सभी बूढ़े लोगों को बाँटने के लिए कंबल मगवाए गए थे। अपनी सोच पर गर्दन झटकते हुए आँखों में ख़ुशी के आँसू लिए वो सभी को कंबल बाँटने में जुट गए और सरप्राईज़ पार्टी यादगार बन गई . . . बच्चे अपने प्यारे दादू को मुबारक बाद देने में जुट गए। कई बार सरप्राईज़ ऐसा भी होता है . . . !

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