परोपकार
कथा साहित्य | लघुकथा भगवती सक्सेना गौड़15 Mar 2022 (अंक: 201, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
दरवाज़े पर कोई था, कॉल बेल बज रही थी। वीणा ने दरवाज़ा खोला देखा, अमित खड़ा है।
बोल पड़ी, “अरे वाह, बड़े दिनों बाद आंटी की याद आयी।
“बैठो, अभी आयी, गैस पर कड़ाही रखी है।”
और किचन मेंं कुछ ज़रूरी काम करते हुए, वो अतीत के कुएँ में झाँकने लगी।
विमला वीणा के घर में 5 वर्ष काम कर चुकी थी, विवाह के बाद ससुराल चली गयी थी। वीणा उसके जाने के बाद से ही बहुत परेशान थी कोई उसके जैसा मेहनती और अपना समझने वाला मिलता ही नहीं था। आज बहुत दिनों बाद विमला आयी थी।
“दीदी, कल ही आयी, समय ही नहीं मिलता, ईश्वर ने एक बेटा दिया, परिवार मेंं बड़ी ख़ुशहाली थी, जो भी कमाते, प्रेम से रहते थे। पर एकाएक कुछ ऐसा हुआ कि ज़िन्दगी बेहाल हो गयी।”
“ऐसा क्या हुआ, बताओ, शायद मैं कुछ मदद कर सकूँ।”
“हाँ, दीदी, बेटा अमित, दो वर्ष का जब हो चुका, तब तक हम इंतेज़ार करते रहे, अब चलेगा, अब दौड़ेगा। पर नहीं, जब सत्य उजागर हुआ, तो सिर्फ़ आँसू ही अपनी रेखा बनाते रहे, आज चार वर्ष का हो गया अमित, पर अपने आप उठ बैठ नहीं सकता, चल नहीं सकता। डॉक्टर को दिखाने का पैसा नहीं, पंडित, ओझा, आर्युवेदिक दवाई खिलाई, सब बेकार।”
“सुनो विमला, कल तुम्हारे साथ सुबह कार लेकर चलूँगी, तुम्हारे बेटे को डॉक्टर के पास ले चलूँगी, मेरा भतीजा हड्डी का डॉक्टर है।”
और दूसरे दिन अमित को देख रहे थे डॉक्टर वीरेन, चेक करके बोले, “इसको पहले आपने कोई डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाया, इसके पैर मेंं कोई दिक़्क़त नहीं है, रीढ़ की हड्डी मेंं एक छोटा सा ऑपरेशन करके स्क्रू लगेगा, थोड़ा ख़र्चा लगेगा, उसके 2 महीने बाद ये धीरे-धीरे बैठ सकेगा, फिर पैरों की मालिश और प्रयास से ये चलेगा और सालभर मेंं दौड़ेगा।”
विमला की आँखों मेंं आँसू थे, वो डॉक्टर साहब और वीणा के पैर पकड़ने लगी, हम लोग रोज़ कमाकर रोज़ खाने वाले लोग हैं, ऑपरेशन का पैसा कहाँ से जमा करूँ।
वीणा ने कहा, “चिंता न करो, अमित ठीक होगा, वीरेन इसको अस्पताल मेंं भरती करो, अब ये घर स्वस्थ होकर ही जायेगा।”
और आज वही अमित कार चलाकर अपनी वीणा आंटी के पास मिठाई लेकर आया था, “लीजिए मुँह मीठा करिए, मुझे बैंक मेंं नौकरी मिलेगी, मैंने परीक्षा पास की है।”
अन्य संबंधित लेख/रचनाएं
टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
कहानी
लघुकथा
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं
Ashok Range 2022/03/10 12:12 AM
Nice story