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प्रतिस्पर्धा

 

शाम को रजनी और राजन चाय पी रहे थे, तभी कॉल बेल बजी। रजनी ने दरवाज़ा खोला। पड़ोस की कुसुम भाभीजी थीं, प्रसन्नता से मिठाई का डब्बा खोलते हुए बोलीं, “रजनी, जानती हो मेरा बेटा मंटू पाँचवीं कक्षा में पहुँच गया, नाइंटी नाइन प्रतिशत नंबर मिले हैं। लो मिठाई खाओ, भैया को भी खिलाओ, बहुत ख़ुश हूँ, और क्या चाहिए, बताओ इसी तरह आगे बढ़ते हुए बेटा कुछ बन जाये।” 

राजन उनकी बातों से अतीत में अपने बाबूजी के पास पहुँच चुके थे। जब रिज़ल्ट आता, राजन के रिज़ल्ट के प्रतिशत पर झूम कर ख़ुशी मनाते और रिवान, उसके जुड़वाँ भाई, को हमेशा डाँट पड़ती, जब कि ज़्यादा अंतर नहीं होता। इस प्रतिस्पर्धा के हाव-भाव में रिवान ख़ामोश रहने लगा। पर एकाएक बारहवीं की परीक्षा के बाद ही उल्टा हुआ, हर प्रतियोगी परीक्षा में वह सफल होता गया, यूपीएससी एग्ज़ाम उत्तीर्ण कर अफ़सर बन गया। और आज राजन बैंक में क्लर्क की नौकरी कर ज़िन्दगी बसर कर रहा है। 

बचपन के नंबर और जीवन की सफलता की कोई तुलना नहींं होती। 

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