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बुढ़ापा

सुलोचना, क्या चली गयी, बेटी ने माँ का रूप धारण कर लिया।

“पापा, दवाई खा लीजिये, और जल्दी से सो जाइये, मोबाइल रात को बिल्कुल नहीं खोलना है, वरना नींद नहीं आएगी।”

“एक बात और, कम्बल ठीक से ओढ़ना पड़ेगा, रात को ठंड बढ़ जाती है, कई बार मैं आकर आपका कम्बल ठीक करती हूँ, बिल्कुल छोटे बच्चे बन गए हैं।”

हे भगवान, क्या ये वही आरती है, जिसके पैदा होने पर अम्मा बोलती थी, बेटा तो हुआ नहीं, बुढ़ापे में कौन देखभाल करेगा। हाँ, एक बात तो माननी पड़ेगी, बेटा एक ही परिवार को रोशन करता है, पर बेटियाँ दोनों परिवारों को जगमग करती हैं। कभी-कभी मैं भी इससे चिढ़ जाता हूँ, कितने बंधनों में रखती है, फिर याद आता है, एक उम्र में मैं इसे रोकता था, आज ये मुझे राह दिखाती है।

“पापा, अभी फोन पर मेरी सहेली ने एक हेल्पर, नारायण का नाम बताया है, कल आएगा, पूरी बात उससे करनी है, वो दिनभर आपके साथ रहेगा, महीने में एक बार मैं दो दिन को आकर सब व्यवस्थित करके जाऊँगी।”

“सुनो, आरती, तुम अपना भी ध्यान रखना, सुलोचना मुझे अकेला छोड़कर चली गयी, अब सिर्फ़ दिमाग़ तुम्हारे ही बारे में सोचता है, राकेश स्वभाव में ठीक है न, तंग तो नहीं करता।”

“नहीं, पापा, मैंने आपको क्या बोला था, कोई टेंशन नहीं लेनी, सब बढ़िया है, वो राज अंकल से और मेरे से हमेशा मोबाइल में सब बातें करना, ओके, माई डिअर पप्पा, अब गुड नाईट . . . “

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