मेरे पापा
काव्य साहित्य | कविता भगवती सक्सेना गौड़15 Jun 2024 (अंक: 255, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
उसूलों की मज़बूत दीवार थे मेरे पापा,
भावनाओं की कोमल किताब थे मेरे पापा,
ज्ञान का अमूल्य भंडार थे मेरे पापा,
हम सब की उम्मीद और आस थे मेरे पापा!
हमारी हिम्मत और विश्वास थे मेरे पापा,
बचपन में खिलौनों की ख़ुशी थे मेरे पापा,
हमारे हर प्रश्न के उत्तर थे मेरे पापा,
सपनों को पूरा करने में महारथी थे पापा!
घर की बुलंद आवाज़ थे मेरे पापा,
माँ और बच्चों के आधार थे मेरे पापा,
शिक्षक के रूप में ज्ञानी थे मेरे पापा,
कई विद्यार्थी के भाग्य आधार थे मेरे पापा!
आज भी मेरे दिल में ईश के रूप में,
विराजमान हैं मेरे पापा!!
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