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तुम क्या हो कि


(बहर मुक्त ग़ज़ल)
 
तुम क्या हो कि दर्द से एक रिश्ता पुराना
मैं क्या कि भूला हुआ कोई क़िस्सा पुराना। 
 
नये ज़माने की चाल ढाल बेहद नई ठहरी
पर मुझे अजीज़ है जाने क्यों रस्ता पुराना। 
 
कई बार सोचा कि फिर से मुलाक़ात करें
पर याद आ गया तुम्हारा वो ग़ुस्सा पुराना। 
 
सब के लिए नया नया कुछ तलाशता रहा
अपने लिए तो ठीक रहा कुछ सस्ता पुराना। 
 
उम्र के साथ चेहरे की रंगत भी जाती रही
जाने कहाँ खो गया वो चेहरा हँसता पुराना। 

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