जो भूलती ही नहीं
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा15 Nov 2021 (अंक: 193, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
प्याज़ी आखोंवाली
वह साँवली लड़की
जो भूलती ही नहीं
आ जाती है जाने कहाँ से?
सूखे हुए मन को
भीगा हुआ सुख देने।
वह सतरंगी ख़्वाबों का
शामियाना तानती
आँखों में संकोच के साथ
नशीले मंज़र उभारती
उसका लिबास
बहारों का तो
बातें अदब की।
मस्ती में नाचती
उसकी पतंगबाज़ आँखें
मानो कोई शिकार तलाश रही हों
रंग और गंध में डूबी
उस शोख़ को
इश्क़ की नज़र से देखना
एक आँखों देखा गदर होता।
उसकी तरफ़ प्रस्थान
कभी सकारात्मक अतिक्रमण लगा
तो कभी
बर्बादी का मुकम्मल रास्ता
पर प्रेम में ज़रूरी
कुछ लापरवाहियों के साथ
कहना चाहूँगा कि
जो प्रेम करते हैं
उनके लिए
तथ्य के स्तर पर ही सही
पर एक कारण
हमेशा शेष रहता है
जो दर्द को भी
एक ख़ास तेवर दे देता है।
वह जंगली मोरनी
मेरे लिए हमेशा ही
एक हिंसक अभियान सी रही
उसकी बाँहों की परिधि में
मेरी ऐसी निरंतरता
असाधारण थी
सचमुच!!
कितना संदिग्ध
और रहस्यमय होता है
प्रेम!!!
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