एक वैसी ही लड़की
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा1 Apr 2015
एक शाम अकेले
जाने-पहचाने रास्तों पर
अनजानी सी मंज़िल की तरफ
बस समय काटने के लिए बढ़ते हुए
देखता हूँ
एक वैसी ही लड़की
जैसी लड़की को
मैं कभी प्यार किया करता था
उसे पल भर का देखना
उन सब लम्हों को देखने जैसा था
जो मेरे अंदर,
तब से बसते हैं
जब से उस लड़की से
मुलाक़ात हुई थी
जिसे मैं प्यार करता था
उस एक पल में
मैं जी गया अपना सबसे
खूबसूरत अतीत
और शायद भविष्य भी
वर्तमान तो बस तफरी कर रहा था
लेकिन उस शाम की याद
न जाने कितने ज़ख्मों को हवा दे गयी
काश............... क़ि
वो लड़की ना मिलती।
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