शिकायत सब से है लेकिन
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा6 Aug 2020
जो कहनी थी
वही मैं बात
यारो भूल जाता हूँ
किसी क़ी झील सी आँखों में
जब भी डूब जाता हूँ
नहीं मैं आसमाँ का हूँ
कोई तारा मगर सुन लो
किसी के प्यार के ख़ातिर
मैं अक्सर टूट जाता हूँ
शिकायत सब से है लेकिन
किसी से कह नहीं सकता
बहुत गुस्सा जो आता है
तो ख़ुद से रूठ जाता हूँ
किसी क़ी राह का काँटा
कभी मैं बन नहीं सकता
इसी कारण से महफ़िल में
अकेला छूट जाता हूँ
मासूम से सपनों क़ी मिट्टी
का घड़ा हूँ मैं
नफ़रत क़ी बातों से
हमेशा फूट जाता हूँ।
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