जीवन के तीस बसंत के बाद
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा15 Mar 2015
जीवन के तीस बसंत के बाद
जब पीछे मुड़कर देखता हूँ तो
कई मुस्कुराते चेहरों को पाता हूँ
लगभग हर आँख में
अपने लिए प्यार पाता हूँ
अपने लिए इंतज़ार पाता हूँ
कुछ अधूरे सपनों की कसक पाता हूँ
संतोष और अपार सुख पाता हूँ
फिर जब आगे देखता हूँ तो
कईयों की उम्मीद देखता हूँ
कई-कई अरमान देखता हूँ
वादों का भारी बोझ देखता हूँ
किसी को ख़ुश, किसी को नाराज़ देखता हूँ
फिर जहाँ खड़ा हूँ
वहाँ से आज तीस बसंत बाद
जब ख़ुद को आँकता हूँ तो
उस परम सत्ता की कृपा के आगे
नत मस्तक होते हुए
इस जीवन के लिए धन्यवाद देता हूँ
और प्रणाम करता हूँ उन सभी को जिन्होंने
मुझे अपने प्रेम और घृणा
विश्वास और अविश्वास
आशीष और श्राप
इत्यादि के साथ
अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया
और
आज जीवन के इस पड़ाव पर
मेरे लिए अपार सुख और संतोष के नियामक बने
आभारी हूँ मैं सभी का
आभारी हूँ उसका भी जो
मेरे अंदर मेरी बनकर रहती है
मेरे अंदर शक्ति का संचार करती है
वो जिसकी गर्मी प्राणवायु सी लगती है
वो जिसके लिए,
दुनिया को सुंदर बनाने का मन करता है
जिसके लिए सब कुछ सहने का मन करता है
वो जो सुंदर है
वही मेरा सत्य है
ये वही है जो
सब कुछ अच्छा बना देती है
सब को मेरा बना देती है
सब को माफ़ कर देती है
सब के बीच मुझे बाँट देती है
आज इतने लोगों में बँट गया हूँ कि
उसी से दूर हो गया हूँ
जिसकी ऊष्मा से
दुनिया बदलने की ताकत रखता हूँ।
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