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निषेध के व्याकरण

उसकी चंचल आँखों में 
कौतूहल का राज था 
निषेध के व्याकरण 
उसने नहीं पढ़े थे 
वह वहाँ तक जाना चाहती 
कि जिसके आगे 
कोई और रास्ता नहीं होता। 
 
वह चिड़िया नहीं थी लेकिन 
उसकी आँखों में 
चिड़िया उड़ती 
अपनी पसंद की हर चीज़ को 
वह जी भरकर देखना चाहती 
इच्छाओं की पतवार वाली 
वह एक नाव होना चाहती। 
 
उसकी नज़र 
बाँधती थी 
उसकी मुस्कान 
आँखों से ओंठों पर 
फिर कानों तक फैलकर 
सुर्ख़ लाल होती 
उसके साथ मेरे सपनों की 
उम्र बड़ी लंबी रही। 
 
उसे देखकर 
यक़ीन हो जाता कि 
कुछ चीज़ों को 
बिलकुल बदलना नहीं चाहिये
उसे देख 
मेरी आँखें मुस्कुरातीं 
और कोई दर्द 
अंदर ही अंदर पिघलता। 

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