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आठ मार्च, विश्व महिला दिवस मनाते हुए

 
वैसे तो नाज़ुक है लेकिन फ़ौलाद ढालना जानती है
वोअपने आँचल से ही ये दुनियाँ सँवारना जानती है। 
 
दुनियाँ बसाती है जो दिल में मोहब्बत को बसाकर
वो अपनी नज़रों से ही बद नज़र उतारना जानती है। 
 
सजाने सँवारने में उलझी तो बहुत रहती है लेकिन
गोया ज़ुल्फ़ों की तरह सब कुछ सुलझाना जानती है। 
 
ऐसा नहीं है कि उसके आस्तीन में साँप नहीं पलते
पर ऐसे साँपों का फन वो अच्छे से कुचलना जानती है। 
 
हर एक बात पर रोज़ ही अदावत अच्छी नहीं होती
इसलिए रोज़ कितना कुछ वो हँसकर टालना जानती है। 
 
आठ मार्च विश्व महिला दिवस मनाते हुए याद रहे कि 
प्रकृति समानता सहअस्तित्व को ही निखारना जानती है। 

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