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अब्दुरौफ़ फ़ितरत और एक भारतीय यात्री की गाथा 

अब्दुरौफ़ फ़ितरत। ʿABD-AL-RAʾŪF FEṬRAT BOḴĀRĪ। Abdurauf Abdurahimov का जन्म सन्‌ 1886 में वर्तमान उज़्बेकिस्तान के बुखारा में हुआ। सिर्फ़ 52 वर्ष की आयु में 04 अक्टूबर सन्‌ 1938 में आप की मृत्यु ताशकंद में हुई। आप की उच्च शिक्षा इस्तांबुल यूनिवर्सिटी से सन्‌ 1908 से सन्‌ 1913 के बीच हुई। यहाँ शिक्षा ग्रहण करते हुए आप इस्लामिक सुधारवाद के संपर्क में आए। इन्हीं दिनों आप ने बहुत से दार्शनिक निबंध लिखे। इस्तांबुल से मध्य एशिया में वापस आने के बाद एक स्थानीय नेता के रूप में आप ने जदीद आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। बुखारा अमीरात की समाप्ति के बाद पीपल्स सोवियत रिपब्लिक सरकार में आप ने कई पद ग्रहण किए। आप ने कई विश्वविद्यालयों में अध्यापन किया और उज़्बेक एस। एस। आर। के अकादमी ऑफ़ साइनसेज़ से शोधकर्ता के रूप में जुड़े रहे। आप का विवाह मुस्तफ़ों बीबी से हुआ। पर्शियन, तुर्की और पुरानी चगताई भाषा में आप ने अपना साहित्य लिखा। 

सन्‌ 1920 में बुखारन पीपुल्स कॉन्सिलियर रिपब्लिक की स्थापना के बाद, अब्दुरौफ़ फ़ितरत ने उच्च आधिकारिक पदों पर कार्य किया, जिनमें शामिल हैं शिक्षा, वित्त और विदेशी मामलों के मंत्री पद। अपने सुधारवादी कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण किया। सन्‌ 1922 में उन्होंने क़रीब सत्तर छात्रों को अध्ययन के लिए जर्मनी भेजने की योजना को कार्यान्वित किया। मार्च 1921 में शिक्षा मंत्रालय ने शिक्षा की भाषा फ़ारसी से तुर्की को आधिकारिक रूप से बनाया। इसके पीछे अब्दुरौफ़ फ़ितरत का प्रभाव ही काम कर रहा था। सन्‌ 1923 और 1924 का कुछ समय उन्होंने मॉस्को में बिताया। ताशकंद लौटने पर सन्‌ 1928 से उन्होंने विश्वविद्यालय में साहित्य पढ़ाने का कार्य किया। सन्‌ 1921 में उज़्बेकी को बुखारा की राष्ट्रीय भाषा बनाने में आप ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उज़्बेकी और ताज़िक भाषा का लिपि के रूप में लैटिनीकरण करने में आप की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण आप को गिरफ़्तार करके सन्‌ 1938 में रिहा भी किया गया। ताजिक आलोचक आप को धोखेबाज़ मानते रहे लेकिन स्वतंत्र उज़्बेकिस्तान में आप को शहीद का दर्ज़ा दिया गया। 

बचपन में आप ने अपने पिता के साथ हज़ की यात्रा की। आप ने तुर्की, ईरान, भारत और रूस की यात्रा की। मक्का आप एशिया होकर गए। उस समय आप ने कुछ समय भारत में भी बिताया। भारत में रहते हुए अपनी आगे की यात्रा के लिए धन राशि जुटाने में भी आप कामयाब रहे। उन दिनों आप कवि के रूप में मिज़मर/ शाकुरी/ खालिद उप नाम का उपयोग करते थे। आप की ऑटोबायोग्राफ़ी सन्‌ 1929 में प्रकाशित हुई। Sirat-i-Mustakim जैसी पत्रिकाओं से आप बहुत प्रभावित थे। आप के लेखन का मुख्य बिन्दु मध्य एशिया के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में सुधार एवं बदलाव लाना था। उन दिनों इस्लामिक समाचार पत्र हिकमत में आप के लेख छपते थे। इस्तांबुल में रहते हुए भी उनकी कुछ पुस्तकें प्रकाशित हुईं। Munozara और Bayanat-i Sayyah-i Hindi [Tales of an Indian Traveler, 1911] यहीं से प्रकाशित हुई। एक भारतीय पर्यटक की गाथा/Bayanat-i Sayyah-i Hindi [Tales of an Indian Traveler, 1911] इस दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है कि भारत में पुनर्जागरण, समाज सुधार आंदोलन और आज़ादी की लड़ाई का बहुत बड़ा प्रभाव अब्दुरौफ़ फ़ितरत पर रहा होगा। भारतीय पर्यटक के माध्यम से जो तर्क और समस्याएँ वे प्रस्तुत करते हैं वे इस बात का स्पष्ट प्रमाण हैं। जिस तरह की वैचारिक प्रगतिशीलता भारतीय पर्यटक के माध्यम से अब्दुरौफ़ फ़ितरत व्यक्त करते हैं दरअसल यह उनकी अपनी सोच और चिंता का ही प्रतिबिंब है। जिसे प्रकट करने के लिए उन्होंने भारतीय पर्यटक का सहारा लिया। 

बहुत सम्भव है कि इस तरह का कोई भारतीय पर्यटक कभी बुखारा आया ही न हो लेकिन उस समय का भारत जिस तरह से अपनी आज़ादी और समाज सुधार के लिए उठ खड़ा हुआ था उससे अब्दुरौफ़ फ़ितरत गहराई से प्रभावित थे। शायद यही कारण रहा हो कि अपने प्रगतिशील और सुधारवादी विचारों से बुखारा के जनमानस को जागृत करने के लिए एक भारतीय पर्यटक की कल्पना की। भारत के संदर्भ में देखें तो सर सैयद अहमद खान ने मुसलमान की तालीम के लिए 1864 में साइंटिफ़िक सोसायटी की शुरूआत की ताकि पश्चिम ज्ञान विज्ञान की किताबों का उर्दू में व्यापक स्तर पर अनुवाद हो सके। 1870 में उन्होंने नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस में मुस्लिम कॉलेज की स्थापना को लेकर प्रयत्न शुरू किया और 1875 में अलीगढ़ में मोहम्मदियां एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना की। सन्‌ 1885 में इंडियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना राष्ट्रवादी विचारों के साथ होती है। सन्‌ 1906 में ही मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा जैसे संगठनों का गठन हुआ। आत्मीय समिति 1815, ब्रह्मओ सभा/समाज 1828, सत्यशोधक समाज 1873, प्रार्थना समाज 1867, आर्य समाज 1875, ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन 1851, मुंबई संगठन 1852, नेटिव एसोसिएशन ऑफ़ मद्रास 1850, इंडियन लीग 1875, इंडियन एसोसिएशन 1876, कुछ इस तरह के ही भारतीय संगठन थे जिन्होंने आम जनमानस को जागृत करने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। निश्चित तौर पर इन सब का प्रभाव अब्दुरौफ़ फ़ितरत पर पड़ा होगा। 

अब्दुरौफ़ फ़ितरत ने ताजिक भाषा में एक भारतीय पर्यटक की कहानी Bayanat-i Sayyah-i Hindi [Tales of an Indian Traveler, 1911] लिखी जो सन्‌ 1911-12 में इस्तांबुल से प्रकाशित हुई थी। दरअसल बुखारा अमीरात में एक जदीदी सुधारवादी के रूप में अब्दुरौफ़ फ़ितरत जिस बदलाव की कल्पना करते थे उसे एक भारतीय पर्यटक की गाथा/कहानी के माध्यम से सामने लाते हैं। अपने देश और समाज में व्याप्त कट्टरता और विरोध की दमनकारी स्थितियों के कारण फ़ितरत के लिए सीधे कुछ कहना सम्भव नहीं था। वह कबीर नहीं हो सकते थे अतः उन्होंने एक भारतीय पर्यटक की कहानी के माध्यम से अपने अंदर का सारा ग़ुबार निकाला। इस किताब में बुखारा आए एक भारतीय मुस्लिम के माध्यम से कई बातें कही गई हैं। दरअसल इस भारतीय मुस्लिम के बहाने फ़ितरत वह सब कह देते हैं जो वह कहना चाहते हैं। इस किताब को पढ़कर यह तो स्पष्ट हो जाता है कि फ़ितरत अपने देश के हालात से बड़े दुखी थे। मुल्लाओं, मुफ़्तियों और अमीरों के धन के लालच तथा वैज्ञानिक और आधुनिक सोच से दूरी को वह अपने समाज के पिछड़ेपन का मुख्य कारण मानते थे। बुखारा के तात्कालिक शासन्‌ व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और शोषण की नीतियों को बड़ी चालाकी से फ़ितरत भारतीय पर्यटक के माध्यम से चित्रित करते हैं। 

स्वच्छता और स्वास्थ्य सम्बन्धी विषयों पर चिंता व्यक्त करते हुए फ़ितरत भारतीय पर्यटक के बहाने बुखारा में एक उच्च मेडिकल स्कूल खोलने की आवश्यकता पर बल देते हैं। इसके लिए वह बहुत से सबूत और आँकड़े भी रखते हैं। जिसके लिए अमीरात के ख़ज़ाने की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं अपितु वक्फ़ के पैसे से ही सब कुछ किया जा सकता है अर्थात्‌ वे सिर्फ़ समस्या नहीं गिना रहे अपितु उसके निदान का तर्कपूर्ण रास्ता भी दिख रहे हैं। वह अपने लोगों को यूरोपीय देशों की तरह सुसंस्कृत, शुद्ध और शिक्षित समाज की तरह देखना चाहते हैं। फ़ितरत अपने लोगों को आधुनिक आचार विचार से जोड़ना चाहते थे, इसके लिए वह पैगंबर मोहम्मद की हदीसों, क़ुरान के अंश और इस्लामी विचारों का ही सहारा लेते हैं। भारतीय पर्यटक के माध्यम से फ़ितरत कई परेशानियों की चर्चा करते हुए उनके समाधान के लिए विश्व भर से अनेकों उदाहरण देते हैं। यह उनकी व्यापक वैश्विक दृष्टिकोण का परिचायक है। 

अपने देश और समाज में व्याप्त गहरी त्रासदी को समझते हुए उसके निवारण की भी एक व्यवहारिक रूपरेखा व प्रस्तुत करते हैं। प्रकृति संरक्षण, भूमिगत संसाधनों का कुशलतापूर्ण एवं संयमित प्रयोग जैसे विषयों पर भी फ़ितरत भारतीय पर्यटक के माध्यम से विचार प्रस्तुत करते हैं। अपनी मातृभूमि को स्वतंत्र और समृद्ध देखने की उनकी इच्छा इस पुस्तक में कई जगह स्पष्ट होती है। वह अपने लोगों को अज्ञानता और लापरवाही के दलदल में फँसा हुआ महसूस करते हैं। वहाँ की दैनिक स्थिति से पाठकों को अवगत कराने के लिए वे लिखते हैं कि—परिणाम स्वरूप संस्कृति के आकाश का एक चमकता सितारा, मानवता की किताब का एक चमकता पन्ना तुर्किस्तान अपने मित्रों और शत्रुओं के सामने शर्मिंदगी की स्थिति में आ गया, विनाश की ओर आ गया। 

इसी तरह मुफ़्तियों पर कटाक्ष करते हुए भी लिखते हैं कि—वह ख़ुद तो अनगिनत ज़ुल्म और पाप करते हैं लेकिन ऐसे बैठे रहते हैं जैसे उन्हें पता ही नहीं और एक छोटे से पाप के लिए ग़रीबों पर काफ़िर होने का आरोप लगाते हैं। सभी मानवीय गुणों और अनपढ़ सत्ता के लोगों के प्रति फ़ितरत क्रोध व्यक्त करते हैं। कैसे होगा देश का उत्थान? राज्य का ख़ज़ाना कैसे भरेगा? जैसे प्रश्नों से फ़ितरत लगातार जूझते नज़र आते हैं। साथ ही साथ धार्मिक आस्था कैसे आडंबर और ग़लत रिवाज़ का शिकार हो जाती है, उसका भी उदाहरण फ़ितरत देते हैं। वे एक तालाब का ज़िक्र करते हैं जिस में लोग वजू कर रहे हैं और उसी को पीने के लिए ले जाते हैं। यह देखकर भारतीय पर्यटक कहता है कि—बहुत से लोग तालाब में वजू करते हैं। मुँह धोते हैं। नाक धोते हैं। गंदे पैर साफ़ करते हैं। अतः इसे न पिया जाए और अगर पीना है तो इस कुंड में स्नान न करें। अपनी नाक न धोएँ। अपने पैर न धोएँ। इस कुंड में कचरा न फेकें क्योंकि पीने का पानी साफ़ होना चाहिए। इसी तरह हजरत बहाउद्दीन की क़ब्र पर झंडे को लगाने और उस पर लोगों के झुकने की स्थिति को लेकर भी भारतीय पर्यटक अपनी आपत्ति दर्ज करता है। 

मज़ार की दुनियाँ का वह परचम और उससे जुड़ी परंपरा पर भारतीय यात्री के बहाने अब्दुरौफ़ फ़ितरत प्रश्न उठाते हैं। भारतीय पर्यटक कहता है कि—इस तरह अगर सज्दा ठीक है तो ईसाइयों को काफ़िर कहना ठीक कैसे? फ़ितरत उस तथाकथित भारतीय यात्री के बहाने कई प्रश्न खड़े करते हैं। वह लिखते हैं कि—आप मूर्ति पूजा और सलीब की पूजा के मामले में दूसरों को काफ़िर कहते हैं जबकि स्वयं संतुष्ट होने के लिए क़ब्रों की लड़कियों और घाटों की पूजा करते हैं। आप बहाउद्दीन से प्रार्थना करते हैं और फिर कहते हैं कि आप मुसलमान हैं। इतना तो स्पष्ट है कि इस तरह के प्रश्नों को खड़ा करने वाले फ़ितरत कई लोगों की आँखों में चुभने लगे होंगे। ऐसे लोगों ने उन्हें गद्दार तक कहा लेकिन अपने सुधारवादी विचार और वैज्ञानिक चेतना के साथ फ़ितरत लगातार कार्य करते रहे। अपने साहित्य के माध्यम से उन्होंने अपने विचारों का प्रचार-प्रसार भी निडर होकर किया। एक भारतीय यात्री की गाथा नामक अब्दुरौफ़ फ़ितरत की किताब के सम्बन्ध में हबीब बोरजियान/Habib Borjian, “Feṭrat,” Encyclopaedia Iranica, Vol. IX, Fasc. 6. के माध्यम से लिखते हैं कि, “Bayānāt-e sayyāḥ-e hendī (Tales of an Indian traveler) relates the memoirs of an Indian tourist on a visit to Bukhara. It compares every aspect of life there against European standards and finds it wanting; in particular, it taunts the superstitious beliefs of the masses, as expressed in pilgrimage to the mausoleum of Bahāʾ-al Dīn Naqšband or through the contrast between a traditional healer and a Russian physician.” हबीब बोरजियान के इस कथन से इस किताब के महत्त्व को आसानी से समझा जा सकता है। अब्दुरौफ़ फ़ितरत ने उस समय इतने क्रांतिकारी तरीक़े से लेखन कर अभिव्यक्ति के सारे ख़तरे उठा लिए थे। 

इसी किताब के एक अंश में वासना से भरे भयानक और निंदनीय दृश्य को देखते हुए भारतीय यात्री प्रार्थना करता है कि—हे संसार के रक्षक, या तो इन्हें शिक्षा देने का कोई तरीक़ा ढूँढ़े या ज़मीन के नीचे कोई जगह दिखाएँ। इन बेशर्म और शर्मनाक लोगों की गंदी कृतियों से क़ुरान की प्रतिष्ठा को नुक़्सान न पहुँचने दे। इसी तरह बुखारा में उपलब्ध मदरसे और उनके बंदोबस्त के लिए निर्धारित राशि के बारे में सुनकर भारतीय यात्री ख़ुश होता है। लेकिन उसका मित्र हक़ीक़त बयाँ करते हुए बताता है कि—सभी अच्छे स्थान, निधियाँ इत्यादि कृतघ्न नास्तिक लोगों का घर बन गए हैं। वह सिर्फ़ भ्रष्टाचार का काम करते हैं। मदरसा और किताबें हैं लेकिन अरबी का एक पन्ना भी पढ़ने के लिए कोई विद्वान नहीं है। 200 मदरसे वाला बुखारा शहर बंद पैसों के भ्रष्टाचार का शिकार हो चुका है। प्राथमिक विद्यालय अशिक्षित शिक्षकों द्वारा चलाए जा रहे हैं। 300 प्राथमिक विद्यालयों वाले बुखारा के अधिकांश बच्चे चोरी में लिप्त हैं। वे अनैतिकता ग़रीबी और दुख भोगने के लिए अभिशप्त हैं। ऐसी बहुत सारी बातें हैं जिन्हें फ़ितरत ने इस किताब में एक भारतीय यात्री के माध्यम से कही हैं। 

समग्र रूप से हम यह कह सकते हैं कि एक समाज सुधारक के रूप में अपने चिंतन और विचारों की प्रखरता को “एक भारतीय यात्री की गाथा” के माध्यम से प्रस्तुत करने वाले अब्दुरौफ़ फ़ितरत अनायास भारत का नाम नहीं लेते हैं। तत्कालीन भारत की सामाजिक बदलाव की तड़प, पुनर्जागरण और शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे कार्य तथा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की गूँज निश्चित ही उन्होंने सुनी थी और इससे गहराई से प्रभावित भी थे। अब्दुरौफ़ फ़ितरत के विचारों को भारतीय पुनर्जागरण और स्वतंत्रता आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में गहराई से देखा जाना चाहिए। ऐसी संभावनाओं को टटोलने का यह आलेख एक विनम्र प्रयास है। 


डॉ. मनीष कुमार मिश्रा 
विजिटिंग प्रोफ़ेसर(ICCR Chair)
दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व एशियाई भाषा विभाग 
ताशकंद राजकीय प्राच्य विश्वविद्यालय 
ताशकंद, उज़्बेकिस्तान 
मोबाइल – +998503022454
manishmuntazir@gmail.com

संदर्भ : 

  1.  https://elib.tstu.uz/wp-content/uploads/2022/08/Abdurauf-Fitrat.pdf

  2. https://library.tsdi.uz/storage/books/March2022/0mwSY33y9r4vVvHBXx3W.pdf

  3. https://library.oapen.org/bitstream/id/828f5387-066d-4e72-b5f8-782d89d6e424/9783110774856.pdf

  4. https://www.researchgate.net/publication/367241696_'Abdurra'uf_Fitrat_in_Istanbul_Quest_for_Freedom

  5. PHILOSOPHICAL ANALYSIS OF ABDURAUF FITRAT'S VIEWS ON ENLIGHTENMENT-Yuldash Yusubboevich Isomiddinov, Samarkand branch of the Tashkent State University of Economics, SOI: 1.1/TAS DOI: 10.15863/TAS, International Scientific Journal, Theoretical & Applied Science-ISSN: 2308-4944 (print) e-ISSN: 2409-0085 (online) Year: 2022 Issue: 08 Volume: 112, Published: 03.08.2022 http://T-Science.

  6.  https://www.academia.edu/4542898/Abdurauf_F%C4%B1trat_ve_Onun_%C3%96zbek_Klasik_M%C3%BCzi%C4%9Fi_Hakk%C4%B1ndaki_Eseri_Abdurauf_Fitrat_and_His_Product_about_Uzbek_Classical_Music_

  7. THE ABDURAUF FITRAT LOVE FOR REAL- MURATBEK YUSUPOV, Namangan State University, Uzbekistan . NOVATEUR PUBLICATIONS, JournalNX- A Multidisciplinary Peer Reviewed Journal ISSN No: 2581 – 4230 VOLUME 6, ISSUE 7, July -2020

  8. https://www.uzbekliterature.uz/sites/default/files/the-views-of-the-great-uzbek-writer-abdurauf-fitrat-on-education-and-upbringing.pdf

  9. From Atheism to Anti- Colonialism: Fitrat’s Writings from the 1910s to the 1930ies -Mirzaeva Zulkhumor Inomovna International Journal of Recent Technology and Engineering (IJRTE) ISSN: 2277-3878, Volume-8 Issue-3, September 2019

  10. https://samswarroom.com/2022/10/10/my-love-for-central-asian-literature-part-1-abdurauf-fitrat-abdulla-qodiry-and-cholpon/

  11. Habib Borjian, “Feṭrat,” Encyclopaedia Iranica, Vol. IX, Fasc. 6, New York, 1999, pp. 564-567.

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