बनारस 04 - काशी में शिव संग
काव्य साहित्य | कविता डॉ. मनीष कुमार मिश्रा15 Mar 2015
भंग छान सब मस्त रहें
काशी में शिव संग।
होली के हुडदंग का
यहाँ अनोखा रंग।
शाहन का भी शाह फकीरा
फिरे घाट होइ झंट।
बम बम बोल भक्त यहाँ
ठेउने पर पाखंड।
बोल कबीरा के बोले
और झूमें तुलसी संग।
हरफन मौला, छोड़ झमेला
यही बनारसी ढंग।
रोम रोम पुलकित हो जाये
जब भी देखूँ पावन गंग।
बड़े बड़े बकैत यहाँ
अड़ीबाज हो करते जंग।
पान चबाकर कुर्ता झारकर
बातों से करते दंग।
लंकेटिंग की बात निराली
जादा तर अड्बंग।
बना रहे ये रंग बनारस
हो ना टस से मस।
सांड सुशोभित गलियों में
बच्चे फिरते नंग धडंग।
मुर्दों का मेला ठेला
दाह हो रहे अंग।
इच्छाओं को दाह कर
मुस्काते हैं मलंग।
काशी की है बात निराली
अर्धचंद्र इसका अलंग।
अड़ी खड़ी भोले त्रिशूल पर
उनको भी अति प्रिय।
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