मैं सब की नज़रें बचाकर छुपाकर देखता हूँ
शायरी | ग़ज़ल डॉ. मनीष कुमार मिश्रा15 May 2023 (अंक: 229, द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)
मैं सब की नज़रें बचाकर छुपाकर देखता हूँ
तेरे व्हाट्सअप डीपी को कई बार देखता हूँ।
तुम्हारे साथ वाली उस पुरानी ग्रुप फोटो को
ज़ूम करके मोबाइल को घुमाकर देखता हूँ।
फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल लॉक है जानता हूँ मगर
तेरा नाम लिख सर्च बटन दबाकर देखता हूँ।
यूँ तो सालों से तुम्हारा कोई कॉल नहीं आया
मैं मिस्ड कॉल में तेरा नाम जाकर देखता हूँ।
कभी कभी तो मैं इतना बेचैन हो जाता हूँ कि
सोचता हूँ सारे गिले शिकवे मिटाकर देखता हूँ।
जब कभी बात मेरे बरदाश्त के बाहर होने लगी
तब ये सोचा कि अब फ़ोन लगाकर देखता हूँ।
मिल जाओगी कहीं अचानक ही जब कभी भी
सोचा यह भी कि तुम्हें गले से लगाकर देखता हूँ।
ठीक है मेरी भी ग़लती थी तो सह लूँगा थोड़ा सा
सोचा तुम्हारे हाथ के दो थप्पड़ खाकर देखता हूँ।
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