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रूठे से ख़ुदाओं को

२२१ १२२२ २२१ १२२२

हर बात छुपाने की हम दिल से निभायेंगे
जिस हाल में छोड़ा वो, हालात भुलायेंगे

मालूम न था, तुझको बस हम से, शिकायत है
तस्वीर जुदा होगी, दर-असल सुनायेंगे

वो जिन के इशारों हो रहती है तरफ़दारी
म्ज़बूत इरादे उनको राह हटायेंगे

इस तरह कोई अपनों से रूठ नहीं जाता
रूठे से ख़ुदाओं को बेफ़िक्र मनाएँगे

गुत्थी जो सुलझती सी, दिखती जब भी हमको
ये राज़ के खुलने पे तफ़सील बतायेंगे

मुफ़लिस के भरोसे चल जाती अगरचे दुनिया
हम जन्नत दरवाज़े तक दरबार लगायेंगे

होगा कल तेरा इत्मीनान ज़रा रख ले
सुलगे से सवालों को आसान बनायेंगे

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