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सुशील यादव – दोहे – 004

1.
बुना नहीं दिन एक में, प्रभु का माया जाल।
मदिरा कहीं बना दिया, नारी कहीं कमाल॥
2.
अंग-अंग सारा टूटता, छलनी हुआ शरीर। 
कब छोड़ोगे बोलना, अपना है कश्मीर॥
3.
अंतस डाका डालकर, चलता दिखा बसंत। 
यादों के पत्ते झरे, जिसका आदि न अंत॥
4.
अक्षर-अक्षर बस छोड़ता, व्यापक विष का बाण।
बात कभी मत वो लिखो, व्याकुल कर दे प्राण॥
5.
अगर किसी से हो गया, जन्मो जनम क़रार।
अब तो रखना छोड़ दो, अपने पास उधार॥ 
6.
अगहन के दिन आलसी, कँपकपाती पूस।
नेताओं को जीमने, दे दो कंबल घूस॥ 
7.
अच्छे-अच्छे दिन गए, संग चने के भाड़।
बिन बरसे तुम भी चलो, सावन और अषाढ़॥
8.
अपनी नीयत साफ़ है, तेरी तू ही जान।
देने वाला दे रहा, तम्बू से वरदान॥
9.
अपने अपने खेत में, हम हैं साधनहीन।
बीच सरे बाज़ार क्यूँ, करते हो तौहीन॥
10.
तुमको अवसर है मिला, पितर करो सम्मान।  
दुविधाओं के द्वंद से, निकलो भी यजमान॥
11.
अपने घर लगती नहीं, इस मौसम में आग।
चार तरफ़ पानी यहाँ, इच्छाधारी नाग॥
12.
अपने मक़सद डालता, देख परख के घास।53
जो कल उनके आम थे, आज वही है ख़ास॥
13.
अपने मक़सद पास वो, बाक़ी दुनिया फेल।
रखता जला मशालची, ख़ून पसीना तेल॥ 
14.
अपने मन की देख लो, डूबा खड़ा जहाज़।
पी लें कुँआ खोद के, अब वो नहीं रिवाज़॥
15.
अपनों से धोखा हुआ, स्वजनों खाये मात।
जिस हाल रखी ज़िंदगी, उसी रूप तैनात॥
16.
अब तो जी से बोल दो, दबी-दबी हर बात।
कल क्या जाने जा छुपे, तारा अटल प्रभात॥
17.
अब तो दिखना बन्द है, स्वेटर वाले हाथ।
जाड़ा फिर भी ज़ोर से, निभता पी के साथ॥ 
18.
अब तो मेरे हाल पर, मुझको छोड़ो आप।
 मुड़ कर तो देखा नहीं, मेरा रुदन विलाप॥ 
19.
अब तो मेरे हाल पर, मुझको छोड़ो यार।
करते-करते तंग हूँ, अपना ही किरदार॥
20.
अरज़ी राहत की धरी, हर चौखट हर द्वार।
नाथ मुझे तो ये बता, किस युग हो उद्धार॥ 

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