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मौक़ा’-ए-वारदात पाया क्यों गया

 

बहर: हज़ज मुसम्मन अख़्र्म उश्तुर मकफ़ूफ़ मजबूब
अरकान: मफ़ऊलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलु फ़अल
तक़्तीअ: 222    212    1221    12
 
मौक़ा’-ए-वारदात पाया क्यों गया
क़ातिल मुझको ही बोल उठाया क्यों गया
 
माटी के मोल थे नमूने सभी तो
कारोबारी की ज़द में लाया क्यों गया
 
बस था वो इश्तिहार आदम से जुड़ा
किस की शह पे इसे हटाया क्यों गया
 
समझाने में लगा हुआ कौन किसे
समझौता आख़िरी कराया क्यों गया
 
टूटे हैं चाहने में फिर तुम को हमी
सदियों ये ज़ुल्म आज़माया क्यों गया
 
जो थे तुम मुंतज़िर नहीं इन के मतों
सरहद पे शहर को बसाया क्यों गया
 
देखा है पाँव तुम ने अंगद के यहाँ
जीवन भर बे-मज़ा हिलाया क्यों गया
 
मेरे सारे उसूल थे सादगी के
मुझ को क़ानून से फँसाया क्यों गया
 
ज़द= आघात, चोट, चपेट

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