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इस दुनिया से जुदा बेख़बर हैं लोग

 
इस दुनिया से जुदा बेख़बर हैं लोग
मंदिरों के उखड़े पत्थर हैं लोग
 
देखा खींच, आसानी से ताना
ये किस मिट्टी बने रबर हैं लोग
 
कब ज़िद टूटे, दबाव में तड़के
खिलौनों के, अस्थि-पंजर हैं लोग
 
जब ख़ौफ़ बढ़ गया, राहजनी का 
धारणा ख़ूब बनी, रहबर हैं लोग
 
अपनी ज़मीन, हाथों निकल गई
सीचें कौन इसे, बंजर हैं लोग
 
वापस खींच उसे हम, ला नहीं सकते
उस गली से चिपके, अस्तर हैं लोग
 
रोज़ करते हम, देख भाल उनकी
अब मर्ज़ क्या कहें, बेअसर हैं लोग

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