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मेरा वुजूद तुझसे भुलाया नहीं गया

 

बहर: मुज़ारे मुसम्मन अख़रब मकफ़ूफ़ महज़ूफ़
आरकान: मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
तक़्ती'‌अ: 221    2121    1221    212
 
मेरा वुजूद तुझसे भुलाया नहीं गया
बाक़ी उधार था जो चुकाया नहीं गया
 
हम ज़िंदगी के मेले तो ख़ुश हो चला किए
दुश्मन से बोझ रोज़ उठाया नहीं गया
 
हम ग़म को बाँट कर ख़ुशी माँगे नसीब से
अहसास रास्तों से हटाया नहीं गया
 
देखो जिधर उधर ही मुसीबत बुला रही
हमलावरों से मुल्क़ बचाया नहीं गया
 
अवसर तो आपदा से निकाले हैं लोग भी
हम से किसी अँदाज़ कमाया नहीं गया
 
जाने खिला रहे हैं भरी धूप चांदनी
क्यारी में एक फूल खिलाया नहीं गया
 
जो तोड़ना ही जाने उसूलों को आए दिन
उनसे तो उजड़ा गाँव बसाया नहीं गया
 
मनमानी लोग जो दिखा जाते यहाँ वहाँ
तेवर ‘सुशील’ तुमसे दिखाया नहीं गया

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