पत्नी की मिडिल क्लास, "मंगल-परीक्षा"
हास्य-व्यंग्य | हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी सुशील यादव9 Mar 2018
आफिस से लौट कर जूते-मोज़े, खोलते हुए बेटर-हाफ को आवाज लगाई, "सुनती हो..? ये नासपिटो (नासा के पिटे हुए) ने हमारा सलेक्शन मंगल-ग्रह जाने के अभियान में कर लिया है। इसरो-बॉस ने हमें खुशखबरी सुनाते हुए मुबारकबाद दी है!"
पहले तो बीबी गर्व से साराबोर हुई....। फिर आर्ट-विषय से एम.ए. पास के भेजे में, भूगोल और साईंस की मिली-जुली खिचड़ी, पक कर, कूकर-वाली लंबी सीटी बजी, तो यकायक ख़्याल आया, ये मंगल-गढ़ की बोल रहे हैं क्या.....?
उसने फिर स-अवाक पूछा, "क्या कहा, ,,,,मंगल-ग्रह यानी अन्तरिक्ष वाला....? जाना है...? ये, अपने टीकमगढ़ से तो, करोड़ों मील की दूरी पर है, बतावे हैं...?"
"हाँ ...करोड़ों मील दूर..... बिलकुल सही सुना है। लाखों की स्पीड वाला शटल भी, साल-भर में पहुँचाता है।"
"तो बताओ आप ही को, काहे भेज रहे हैं, आपसे ज्यादा पढ़े-लिखे, होशियार सक्सेना जी, श्रीवास्तव जी को काहे नहीं भेज रहे...?"
मैंने कहा, "पगली उन लोगों का फील्ड अलग है। वे लोग पर्चेस में हैं, श्रीवास्तव जी एकाउंट सम्हालते हैं, वे लोग क्या करेंगे .... क्या कहती हो वो तुम्हारे मंगल गढ़ में?"
"तो आप कौन से खेत में मूली बोने जा रहे हैं...? नासा वालों को, आप जैसे भुल्लकड की क्या दरकार पड गई..?"
"हम वहाँ ‘एनालिस्ट’ हैं.....। एनालिस्ट माने..... तुम्हें क्या समझाएँ ...? समझो हम लिक्विड-चीज में क्या-क्या, मिला-घुला है, इसकी जाँच करके बताते हैं?"
"आप क्या जाँच करते होगे.....हमें शक होता है कोई आपके कहे को मानते भी होंगे....? हम जो पिछले दो माह से, दूधवाले को समझने-समझाने की कह रहे हैं उस पर तो जूँ नहीं रेंगती, दूधवाला निपट पानी जैसा दूध दे के, पूरे पैसे गिनवा ले जाता है। उसकी जाँच कभी आफिस में कर आना चाहिए कि नहीं.....? खैर छोड़ो.... मंगल गढ़ में क्या जँचवाना है, नाश पीटो को.....?"
मैंने कहा, "तुम टाइम निकाल के, टी.वी. में सास-बहू सीरियल के अलावा और कुछ भी देख लिया करो। ....कई दिनों से वे चिल्ला-चिल्ला के बखान रहे हैं ....मंगल-ग्रह में पानी की खोज कर ली गई है। ये नासा वाले उसी पानी को, इस धरती में लाकर यहाँ जाँच-वाच करना चाहते हैं। वहाँ के पानी में, और यहाँ के पानी में क्या-क्या समानता और असमानतायें हैं?"
"देखो उधर जा रहे हो तो, अपने घर के लिए भी एक ‘कुप्पी’ रख लेना। एक-एक चम्मच प्रसाद जैसे, मोहल्ले में और किट्टी वाली जतालाऊ औरतों में बाट दूँगी!"
"क्या मतलब ....?"
"वैसे ही, जैसे लोग ‘गंगा-जी’ जाते हैं, तो अड़ोस-पड़ोस वाले बाटल में अपने लिए गंगाजल की फरमाइश कर देते हैं…।"
"पगली! तुमने नासा-इसरो वालों को घास छिलने वाले घसियारों की केटेगरी में समझ रखा है....? बहुत हुआ तो हम चोरी-छिपे, पेन के इंक को, उधर फेंक के थोड़ा-बहुत तुम्हारे प्यार की ख़ातिर ला सकेंगे। ज्यादा की मत सोचना। आगे-पीछे सब देखना पड़ता है.... सी.सी.टी.वी. की जद में चौबीस घंटे रहना पड़ता है, समझी....।"
"लौकी, सेम-वेम के बीज तो, छोड़ के आ सकते हो... मंगल में बसने वाली पीढियाँ अपने बच्चो को कहेगी कि ये लौकी जो देख रहे हो, साकू के पापा सालों पहले अपने साथ लाये थे...?"
"ना ...... वो भी नहीं!"
"फिर वहाँ पानी मिलने का क्या फ़ायदा? हमने समझा पानी मिल गया है तो फसलें भी उगेंगी। आपकी दीगर जरूरत की चीजों का बंदोबस्त भी करना होगा। आप तो एक चड्डी भी धो निचोड़ नहीं सकते पता नहीं उधर कैसे मेनेज करेंगे...? कल से बैगेज तैय्यार करने में भिड़ती हूँ...? कब जाना है.. आखिर...?
"चार-छ: सेट, कच्छा, बनियान, टाई, मोज़े सब नये लेने पड़ेंगे। घिसे-घिसे को चलाए जा रहे हैं ....? दो-तीन जोड़ी शर्ट-पेंट भी कल माल से ले लेंगे। अभी उधर, फिफ्टी-पर्सेंट आफ का आफर चल रहा है।"
मैंने कहा, "आराम से, …वे लोग तैय्यारी के लिए हफ्ते भर का टाइम देते हैं।"
"आपको मठरी-खुर्मी बहुत पसंद है, कल से, जितना ले जाना है, बनाए देती हूँ...।"
मैंने ज़ोर देकर कहा, "वे लोग ये सब कुछ अलाऊ नहीं करते....। सब डस्ट बिन में डाल देंगे....! और हाँ, वहाँ बाहर के लोगों को कहीं किसी को कुछ दिखाने का नहीं, बरमुडा ही काफी रहता है। हाँ ठंडी बहुत रहती है.. मगर वे लोग उसका भी इन्तिजाम कर रखे होते हैं तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं। वैसे डार्लिंग! ये मेरा पहला टूर होगा जहाँ से तुम अपने लिए कुछ भी नहीं मँगवा सकती...? मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है...।"
"आप बीबी लोगों को नहीं जानते... हम कुछ भी मँगवा सकती हैं! कम से कम एकाध पत्थर एड़ी घिसने ले लिए तो लेते ही आना। बड़े फक्र से किट्टी-बहनों को बता सकूँगी कि मंगलग्रह के पत्थर से अपना रूप-रंग निखारती हूँ।"
"देखो अब, हफ़्ते दो हफ़्ते का मेहमान हूँ तुम्हारा...! जी भर के खिलाओ-पिलाओ, प्यार-व्यार कर लो!"
वो सकते में आ गई ...कैसी अशुभ बातें कहते हैं?
"सही बताओ वापस कब तक आना होगा...? एक-दो हफ़्ते में तो लौट आओगे..?"
"अरे तुम्हें मालूम नहीं...? शायद साल भर तो जाने का ही लगता है अब सोच लो...."
"तो फिर आपको मैं जाने नहीं दूँगी ....भाड़ में जाए ऐसी नौकरी!"
पत्नी के भूगोल ज्ञान में अचानक भूकंप सा आने लगा जो धीरे-धीरे, सात-आठ डेसीबल की तरफ़ बढ़ने लगा।
"बड़े साइंटिस्ट बने फिरते हैं नासा वाले, नाश पिटे! मशीन काहे नहीं बना सकते...? इतनी बड़ी-बड़ी खोज किया करते हैं, एक छोटी सी ‘पानी-जाँच मशीन’ बनाने के लिए कंजूसी क्यों कर रहे हैं? उनको हमारा ही मर्द दिखा.... जो आर्डर फर्मा रहे हैं...?
"और मै पूछती हूँ तुम कैसे मर्द हो जी...? जो कोई भी आदेश पा के खुशी-खुशी चहकते घर में आकर ऊँची नाक करके अपनी बीबी को बहादुरी के किस्से बखान कर रहे हो....? मैं कल सुबह ही, ‘झा अंकल’ से कहके आपके इसरो-शशुरो आर्डर को केंसिल करवाने के लिए, पी.एम. से बात करने को कहूँगी। अपने ही सांसद आड़े समय में काम न आये तो क्या फ़ायदा...? मैं तुम्हें किसी कीमत में मंगल ग्रह में जाने नहीं दूँगी।"
मुझे अनजाने ही अपनी बेटर हाफ का, बेटर-फूल वाला, यानी सती-सावित्री रूप का साक्षात दर्शन हो गया।
चुपचाप शर्ट की ऊपरी जेब से कोई बिल नुमा कागज़ निकाल के.. टुकडे-टुकड़े कर दिया और कहा लो, "मेरा जाना केंसिल! इसरो-शशुरो बॉस को समझो मै कल मना लूँगा।
"हाँ, नासा वालों का हर प्रोग्राम बेहद टॉप सीक्रेट होता है। अड़ोस-पड़ोस में मेरे दौरे की चर्चा नहीं करना वरना लेने के देने पड़ सकते हैं...। सज़ा के तौर पर ही ज़िन्दगी भर के लिए मुझे मंगलवासी बना दें!"
वो लजाते हुए बोली, "मुझे आप एकदम भोली समझे हैं क्या ....इतना दिमाग तो कम से कम है ही।"
मै मुस्कुरा दिया ....
मुझे लगा इस फर्जी एहसान तले, मेडम ‘सावित्री’ को लाकर कम से कम कुछ दिनों के लिए अच्छा खाने-पीने और मस्ती का लाईट इन्ताज़ाम बख़ूबी कर लिया।
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