अधरों की अबीर . . .
शायरी | ग़ज़ल सुशील यादव1 Jan 2025 (अंक: 268, प्रथम, 2025 में प्रकाशित)
बहर-ए-हिन्दी मुतकारिब इसरम मक़बूज़ महज़ूफ़
फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन
22 22 22 22 22
कोई मोहब्बत की तक़दीर तो लिख दे
हर ज़ुबाँ पे हद मीठी खीर तो लिख दे
सबने माथे गाल पे क्या-क्या टीका
आकर अधरों की अबीर तो लिख दे
हूँ दस्तबस्ता मैं शहर में अकेला
पैरों बदनामी ज़ंजीर तो लिख दे
ख़ुश हैं लोग आग लगाके बस्ती में
मौला इनके हिस्से पीर तू लिख दे
मेरी सलामती दुआ माँगी सबने
मेरे नाम अपनी जागीर तो लिख दे
यहाँ बुतपरस्ती है हराम मुझको
मन आँखें देखूँ तस्वीर तो लिख दे
मेरे क़द को छोटा करने वाले सुन
मुझ से बड़ी कोई लकीर तो लिख दे
दस्तबस्ता = बँधे हाथ
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