अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी रेखाचित्र बच्चों के मुख से बड़ों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

अँदाज़ यूँ लगा बैठे थे सानेहा उसको

 

मुज्तस मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़ मस्कन
 
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
 
1212    1122    1212    22
 
अँदाज़ यूँ लगा बैठे थे सानेहा उसको
इसीलिए कभी छोड़ा था चाहना उसको
 
वो सख़्त याद की ज़ंजीर ये पता है जब
निगाह भर ज़रा देखें जो तोड़ना उसको
 
घड़ी में तोला घड़ी में वो माशा बन जाती
नज़र-नज़र का फ़क़त फ़र्क़ तौलना उसको
 
जो वो अगर हमें चाहे मना भी सकती है
अकेले हमसे कहाँ होगा रोकना उसको
 
कि सोच में क्या रखें छोड़ना किसे चाहें
अजीब हाल है कुनबे में बाँधना उसको
 
उसे भुलाने क़वायद बहुत की होगी फिर
कहीं लगा भी तो होगा था रोकना उसको
 
मुझे अगर कभी चाहे मना ही लेगी वो
हाँ अब के छोड़ दिया रोज़ सोचना उसको
 
हुनर बहुत है जी उसमें वही परख़ लेती
कहाँ कसौटियों में रोज़ फ़ायदा उसको
 
उदास लम्हों को जीती है शान से बेहद
जवाब देने का आता है क़ायदा उसको
 
सानेहा= अजीब घटना

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

 कहने लगे बच्चे कि
|

हम सोचते ही रह गये और दिन गुज़र गए। जो भी…

 तू न अमृत का पियाला दे हमें
|

तू न अमृत का पियाला दे हमें सिर्फ़ रोटी का…

 मिलने जुलने का इक बहाना हो
|

 मिलने जुलने का इक बहाना हो बरफ़ पिघले…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

ग़ज़ल

कविता-मुक्तक

सजल

नज़्म

कविता

गीत-नवगीत

दोहे

हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी

पुस्तक समीक्षा

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं

लेखक की पुस्तकें

  1. शिष्टाचार के बहाने