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ग़ौर से देख, चेहरा समझ

 

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ग़ौर से देख, चेहरा समझ
सोच में ख़ुद को, ज़िन्दा समझ
 
सीख लेगा, सियासत का खेल
सादगी-संयम, अपना समझ
 
गर्व की, कब उड़ी, कोई पतंग
आसमां-डोर, उलझा समझ
 
शोर गलियों में, दीवार ख़ुद 
इश्तिहारों सा, चिपका समझ
 
चाहतों को लुटा हाथ से
नाम नेमत से, फैला समझ
 
जो करे हर सभा रौशनी
सर वहीं पे, झुकाया समझ
 
फूँक दे जो सियासत में घर
आदमी वो है, तनहा समझ
 
हम चिरागों को ले ढूँढ़ते
देवता मिलता जुलता समझ
 
आप नाराज़ होते रहे
हमको भी ख़ुद से ग़ुस्सा समझ

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