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आस्था के अंगद जब से अड़े हैं भाई

 

आस्था के अंगद जब से अड़े हैं भाई
हम अर्ज़ी लिए तभी से खड़े हैं भाई
 
मनमानी करके अब घबराना सीखो
हर सूरत तुमसे क़द में बड़े हैं भाई
 
बेईमानी तुम चाहे ऊँचा पुल बना लो
खंबों में रिश्ते अटूट गड़े हैं भाई
 
लूटने वाले हरदम दल बल से आते
पकड़े गए भयभीत सभी छड़े हैं भाई
 
राहत चाहें क़ानून हाथ लेने वाले
बंदी जेल उम्र तमाम सड़े हैं भाई

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