क्या चाँद को चेचक हुआ था?
3.
आज बादलों में छुपा है चाँद
तुम्हारी बालकनी से दिखती है एक भीड़
घेरे खड़ी, शायद एक मंदिर को
बारिश ने जाने कैसे
एक टुकड़ा गूमालिंग का
विसर्जित कर
ढहा दी मंदिर की दीवारें।
साँसों में भर गई धूल,
दुर्गंध ताज़े गोबर की,
और वीर्य की।
घुटने लगा दम
मच गई भगदड़
कई जो बचे थे दीवार से
कुचले गए पैरों तले
अपने ही दोस्तों के
हम-ख़यालों के।
लेखक की पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं