क्या चाँद को चेचक हुआ था?
7.
पता है तुम्हें
एक बार एक मगरमच्छ ने
अपने जबड़ों में जकड़ लिया था
चाँद को?
उस रात
जगमगा उठी थीं
गंगा जी।
जल तल से फूटती चाँदनी में
साफ़ दिखा था वह सब
जो छिपा रहता है
गंगा जी की लहरों में।
सच देख, चौंक गया मगर
छूट गई पकड़
और पहुँच गया चाँद
फिर आसमान में।
पर कभी-कभी
जब चाँद पूरा होता है
दिखती हैं ख़ून की दो बूँदें
चमकतीं उस दाग़दार चेहरे पर।
अपनी बालकनी में खड़ी
इन लाल धब्बों को देख
क्या सोचती हो तुम?
क्या कभी चाँद को चेचक हुआ था?
क्या माता आई थी उस पर?
नहीं, ये ख़ून उसका नहीं
मगर के जबड़ों का है।
लेखक की पुस्तकें
लेखक की अन्य कृतियाँ
कविता
- अभिषेक
- अरुणाचल से आए मिथुन
- आशा
- उल्लंघन
- ऊब
- एक ख़्वाब सा देखा है, ताबीर नहीं बनती
- एकल
- कानपुर की एक सड़क पर
- काला चाँद
- गंगाघाट पर पहलवानों को देख कर-1
- तो जगा देना
- नियति
- बातचीत
- बुभुक्षा
- भीड़
- मुस्कुराएँ, आप कैमरे में हैं
- यूक्रेन
- लोकतंत्र के नए महल की बंद हैं सब खिड़कियाँ
- लोरी
- शव भक्षी
- शवभक्षी कीड़ों का जनरल रच रहा नरमेध
- शाम
- शोषण
- सह-आश्रित
- हर फ़िक्र को धुएँ में . . .
- हूँ / फ़्रीडम हॉल
- हूँ-1
- हूँ-2
कविता-मुक्तक
विडियो
उपलब्ध नहीं
ऑडियो
उपलब्ध नहीं