क्या चाँद को चेचक हुआ था?
17.
पत्तों से टपकता जल
भर गए थे शायद बादल
गूँजा था बालकनी में तुम्हारी
शाम का सौंधा संगीत।
और बालकनी के नीचे
मशीनी झींगुरों के
इलेक्ट्रिक सरोद का संगीत
छिपा था बूँदों के बीच।
बालकनी से देख रही थीं तुम
चाँदनी में नाचती बरखा को।
टिन की खपरैलों पर
ऐसे गिरती हैं बारिश की बूँदें
जैसे मशीनगन चल रही हो कहीं।
अब कुछ दिन पानी तो साफ़ मिलेगा
हाँ, खाना सँभल के खाना होगा,
इस बार हैजा न फैले शायद।
चाँद का एक टुकड़ा
बंद खिड़की से
मेरे कमरे में आ गिरा।
मुट्ठी में उसे लेना चाहा
तो रेत बन बह गया।
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