क्या चाँद को चेचक हुआ था?
16.
याद है
एक बार रूठ कर
पार्किंग लॉट से लगे कमरे में
रहने चली गई थीं तुम।
भरी रहती थी उस कमरे में
बीयर और जले तंबाकू की गंध
हर दीवार से झाँकते थे सेल्फ़-पोर्ट्रेट।
थक कर जब सोती थीं
होती थीं पलकों पर
पतली-सी परत नमक की,
और पलकों के पीछे
चिपचिपी-सी मिठास
सपनों की।
एक रात कमरे की खिड़की पर
चाँदनी का तार बाँध
चली आई थी चाँद वाली बुढ़िया,
रात भर चली थी बातें
कितनी ख़ुश थीं तुम।
जैसे उस ही के इंतज़ार में वहाँ रह रही थीं।
अगले ही दिन लौट गई थी।
अब भी कभी-कभी दिख जाती है वह
तुम्हारी बालकनी में।
आज सुबह
चाँद छुपने से पहले
आँख खुल गई।
सपना अभी तक
पूरा टूटा नहीं था।
देखा मैंने
बैठक में,
बाक़ी घर घुस आया है।
घबरा उठा मैं,
अगर तुम बालकनी से उतर आईं
तो कहाँ बैठाऊँगा?
जल्दी-जल्दी बैठक सँवारी,
नींद भी पूरी खुल गई तब तक।
अब लगने लगा है सब ठीक।
पर,
घर बार-बार बैठक पर
दस्तक देता रहता है।
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