क्या चाँद को चेचक हुआ था?
11.
बाँध टूटा था कहीं
तेज़ी से बहा था समय
लहरें उठी थीं
और उनकी परछाइयाँ खड़ी थीं
तुम्हारे होंठों, आँखों को घेरे।
चिड़िया के घोंसले जैसी लगी थी तब
तुम्हारी आँखें।
सूरज ढलते
मैं आकाश का चक्कर काट
लौट आना चाहता था
उन आँखों में।
पर उन आँखों में
जल रही थी चाँद की गुलाबी लौ,
मेरी आँखों में उतरा काला धुआँ
डर गया उससे।
मैं छिदे हाथों का गुच्छा लिए
खड़ा रह गया
बालकनी के नीचे।
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