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सुधारनी होगी शिक्षा की सेहत

किसी राष्ट्र के आध्यात्मिक शक्ति को दृढ़ बनाने, उसकी ऐतिहासिक निरन्तरता को बनाए रखने, उसकी भूतकाल की सफलताओं को सुरक्षित रखने साथ ही उसके भविष्य को आश्वस्त करने में विद्यालय की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसलिए महान शिक्षाविद ‘एस बालकृष्ण जोशी’ ने लिखा है “किसी राष्ट्र की प्रगति का निर्माण विधान-सभाओं, न्यायालयों, और फ़ैक्ट्रियों में नहीं वरन्‌ विद्यालयों में होता है।” 

शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और उसके लिए विद्यालय ही एक सामाजिक संस्था है जिसमें बालक का सामाजिक विकास होता है। विद्यालय एक विशिष्ट वातावरण का निर्माण करता है, जिसमें रहकर बालक अपना सर्वांगीण विकास करता है। व्यक्ति के सामंजस्यपूर्ण विकास के फलस्वरूप उसमें सांस्कृतिक चेतना विकसित होती है जिससे उसमें सामाजिक, शिष्टाचार, सहानुभूति, निष्पक्षता, सहयोग जैसे वांछनीय गुणों का विकास स्वतः ही हो जाता है। 

विद्यालय सभ्य मानव या सभ्य समाज या फिर सभ्य राष्ट्र द्वारा स्थापित वह संस्था है जहाँ छात्रों के क्रियाओं को विशेष शिक्षण-प्रशिक्षण द्वारा प्रशिक्षित किया जाता है जिसके परिणामस्वरूप एक आदर्श मानव का निर्माण होता है और एक आदर्श मानव ही एक योग्य एवं सुव्यवस्थित समाज के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है। 

हमारे देश में ढाँचे, प्रशासन, विचार धाराएँ, उद्देश्य, भौतिक संसाधन के आधार पर विद्यालय के कई प्रकार है यथा:

केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, निजी विद्यालय, संस्कृत विद्यालय, मिशनरीज़ स्कूल, मदरसे, आदर्श विद्यालय, आर्मी वेलफ़ेयर सोसायटी द्वारा संचालित विद्यालय, मिलिट्री स्कूल, विद्या मंदिर, सरकारी विद्यालय, व अन्य विद्यालय। 

उपर्युक्त प्रकार के शिक्षण संस्थान होने के बावजूद भी हमारे देश में शिक्षा का स्तर सराहनीय नहीं है। हाल के वैश्विक अध्ययन एवं शिक्षा मंत्रालय के रिपोर्ट तो यही बताते हैं। ख़ासकर प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा की स्थिति दयनीय है। प्राथमिक शिक्षा जिसे 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के लिए प्रारंभिक शिक्षा भी कहा जाता है। इन वर्षों को बच्चों के लिए महत्त्वपूर्ण बुनियादी वर्ष माना जाता है, जब उनके जीवन की आधारभूत बातें सुदृढ़ता प्राप्त करती है, उनका व्यक्तिगत कौशल, उनकी समझ, भाषागत योग्यता, परिष्कृत रचनात्मकता आदि विकसित होते हैं। यानी प्राथमिक शिक्षा, शिक्षा की नींव का पत्थर है। परन्तु दुर्भाग्यवश हमारे देश में शिक्षा की नींव का पत्थर ही सबसे कमज़ोर है और यही कारण है कि मानव का विकास सही ढंग से नहीं हो पा रहा है। शिक्षा के लिए आधारभूत संरचनाओं की अत्यधिक कमी प्राथमिक विद्यालयों ख़ासकर सरकारी विद्यालयों में देखी जा सकती है। 

शिक्षा क्षेत्र में अपेक्षित सुधार हेतु वर्तमान सरकार की सजगता के बावजूद हम शिक्षा के उस स्तर को प्राप्त कर पाने में सफल नहीं हो पाएँ हैं जिसकी कल्पना हमारे विद्वतजनों ने की है। यह भी सत्य है कि हाल के वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार को गति प्रदान की गई है लेकिन अब भी हम शिक्षा व्यवस्था की मूल समस्याओं को दूर कर पाने में सफल नहीं हो पाए हैं। 

आइए एक नज़र डालते हैं वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली की समस्याओं पर:

  • मुख्य समस्या शासन की गुणवत्ता में कमी। 

  • शिक्षक प्रबंधन, शिक्षक की शिक्षा और प्रशिक्षण, स्कूल प्रशासन और प्रबंधन के स्तर पर कमी। 

  • पाठ्यक्रमों में व्यवहारिकता की कमी। 

  • स्कूल स्तर की आँकड़ों की अविश्वसनीयता। 

  • आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों के लिए किए गए प्रावधानों को लागू न किया जाना। 

  • शिक्षा के अधिकार अधिनियमों को ज़मीनी स्तर पर लागू न किया जाना। 

  • शिक्षा प्रणाली समावेशी नहीं। 

  • अवसंरचना का अभाव। 

  • प्रदान की गई शिक्षा और उद्योग के लिए आवश्यक शिक्षा के बीच अंतर। 

  • महँगी उच्च शिक्षा। 

  • लैंगिक मुद्दे। 

  • शिक्षा संस्थानों के रखरखाव का गिरता स्तर आदि। 

उपर्युक्त समस्याओं के अतिरिक्त कोरोना महामारी ने शिक्षा को काफ़ी प्रभावित किया। शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना महामारी के कारण देश के 20 हज़ार स्कूलों को बंद कर दिया गया जिस वजह से लगभग 1 लाख 89 हज़ार शिक्षक कार्यबल (वर्कफ़ोर्स)  से बाहर हो गए। 

वर्तमान सरकार द्वारा हाल ही में ‘के कस्तूरीरंगन’ की अध्यक्षता में नई शिक्षा नीति 2020 का गठन किया गया। जिसका प्रमुख कार्य भारतीय शिक्षा व्यवस्था को समकालीन बनाने, उसकी गुणवत्ता में सुधार करने, शिक्षा की अंतरराष्ट्रीयकरण तथा विदेशी विश्वविद्यालय के प्रवेश जैसे कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों पर रोडमैप तैयार कर उसे मूर्त रूप देना है। 

अब प्रश्न यह उठता है कि “नई शिक्षा नीति 2020” में जो बदलाव के प्रावधान प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा के लिए किया गया है वह उपर्युक्त समस्याओं के रहते फलीभूत हो पाएँगे या फिर काग़ज़ के पन्नों की शोभा बनकर रह जाएँगे? कोई भी नीति, कोई भी क़ानून चाहे कितना भी सुंदर व सशक्त क्यों न हो यदि उसका क्रियान्वयन सही तरीक़े से नहीं किया जाएगा तो उसकी सफलता की सम्भावना संदिग्ध ही रहेगी। नीति निर्माण करने या क़ानून बनाने एवं उसे लागू करने की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकार की ही नहीं है बल्कि हम सब का सहयोग व साथ भी अपेक्षित है। जब तक कि हम अपने कर्तव्यों के प्रति सजग नहीं होंगे तथा उसे आत्मसात नहीं करेंगे तब तक कोई भी नीति कोई भी योजना का सफल क्रियान्वयन सम्भव नहीं है। 

इसलिए, हम भारत के लोग निष्ठापूर्वक अपने-अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ताकि भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना साकार हो सके। 

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