शिक्षक
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'15 Sep 2021 (अंक: 189, द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
शिक्षक होने का दंभ मैं भरता हूँ।
राष्ट्र निर्माता होने पे गर्व मैं करता हूँ।
हाँ मैं एक शिक्षक हूँ।
यह सच है कि मैंने,
बच्चों को ख़ूब पढ़ाया।
पढ़ा लिखा कर उन्हें
डॉक्टर और इंजीनियर बनाया।
पढ़े लिखे लोगों से इस जहां को सजाया।
पर क्या सच में उन्हें इंसान बना पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
शिक्षक हूँ, शिक्षा देना काम है मेरा।
मैंने अपने कर्तव्यों को बख़ूबी निभाया।
बच्चों को वर्णमाला व ABCD
ख़ूब रटवाया।
पर क्या सच में उन्हें शिक्षित कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
गणित के शिक्षक होने की तो
ग़ज़ब शान है मेरी।
शिक्षा जगत में अलग पहचान है मेरी।
मैंने बच्चों को खूख़ूब गणितीय
ट्रिक्स व फ़ॉर्मूला सिखाया।
पर क्या आत्मा को परमात्मा से जोड़ने
का एक सूत्र भी बता पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
पर्यावरण के शिक्षक होने का गर्व है मुझे।
पर्यावरण संरक्षण के पाठ को मैंने
ख़ूब पढ़ाया।
बच्चों को प्राकृतिक सौंदर्य का बोध कराया।
पर क्या इंसानियत का एक पौधा भी लगा पाया।
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
साहित्य के शिक्षक की तो बात ही मत पूछो।
क़िस्सों,कहानियों व कविताओं को
ऐसे रटवाया।
ख़ुद को उन नौनिहालों का भाग्य विधाता बताया।
पर क्या सच में उनका चारित्रिक निर्माण कर पाया?
अगर नहीं तो व्यर्थ ज्ञान है मेरा,
यह झूठा अभिमान है मेरा . . .
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shaily 2021/09/04 06:44 PM
बहुत सही, भरपूर खुराक दी है, काश लोग इसे समझ सकते।