मुट्ठी में आकाश करो
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'1 Nov 2024 (अंक: 264, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
इक-इक पल है क़ीमती जानो
स्वयं से तुम संवाद करो।
व्यर्थ की बातों में उलझकर
न वक़्त अपना बर्बाद करो॥
मिलती सफलता उसको निश्चित
जिसने चित्त में ठाना है।
अंतक भी रास्ता रोक ना सका
जिसने ख़ुद को जाना है॥
मत करो प्रतीक्षा अगले क्षण की
करना है जो आज करो।
समय बहुत है पास हमारे
इस सोच का तुम त्याज्य करो॥
कर लो वादा स्वयं से आज तुम
नहीं कभी भरमाओगे।
करोगे ना पीछे पग को कभी
ना ही तुम घबराओगे॥
उठो चलो और चलते चलो
संघर्षों का आग़ाज़ करो।
साधोगे लक्ष्य को अवश्यमेव
स्वयं पर तुम विश्वास करो॥
समय को कोई रोक सके
ऐसा सम्भव हो न पाया है।
जिसने समय का साथ निभाया
वो सिकन्दर कहलाया है॥
उठो बढ़ो और बढ़ते जाओ
स्वयं का तुम विस्तार करो।
हाथ बढ़ा कर सुन मेरे वत्स
अब मुट्ठी में आकाश करो॥
कुमकुम कुमारी “काव्याकृति“
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