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अब ये क़दम ना पीछे हटेंगे

 

ऐ सुन मेरे भाई मत बोल तीखा, 
अभी तो मैंने बस चलना है सीखा। 
पूरा है भरोसा स्वयं पर मुझको, 
मुक़द्दर से मैंने लड़ना है सीखा। 
 
लगा ले चाहे कोई ज़ोर कितना, 
दुसाध्य है यारो मुझको जीतना। 
तोड़कर रहेंगे हर एक आलान, 
मैंने भी तो अब उड़ना है सीखा। 
 
कहता हूँ जो वो मैं कर के रहूँगा, 
ज़ुल्मों सितम अब ना हरगिज़ सहूँगा। 
मुझे बैसाखी की नहीं है ज़रूरत, 
अकेले ही मैंने लड़ना है सीखा। 
 
चाहे ज़माना ये क़हर बरपाए, 
राह में चाहे फूलों को बिछाए। 
पड़ता नहीं अब कोई फ़र्क़ मुझपे, 
शोलों पर मैंने चलना है सीखा। 
 
हटेंगे ना पीछे अब क़दम मेरे, 
चाहे हों कोहरे जितने घनेरे, 
करेंगे एकदिन अम्बर को वश में, 
अनंत में विचरण करना है सीखा। 

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