कुछ नवीन सृजन करो
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'15 Jan 2025 (अंक: 269, द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)
त्यागकर व्यग्रता को अब तुम,
मनन करना शुरू करो।
कठिन परीक्षा अभी बहुत है,
मन को तुम धीर करो।
खोल कर ईक्षण को अपने,
आप का दर्शन करो।
दिए थे जो स्व को वचन तुम,
वचन का स्मरण करो॥
छोड़कर आलस्य को अब तुम,
चित्त से निश्चय करो।
साधोगे लक्ष्य को असंशय,
अविरत स्वधर्म करो।
ज्ञान और विज्ञान से अब तुम,
नव्य अन्वेषण करो।
होगा गर्व तुम पर सभी को,
कुछ नवीन सृजन करो॥
कहते जो मनीषी हमारे,
उनका अनुसरण करो।
पाओगे निश्चित सफलता,
अहम का मर्दन करो।
रखना आस्था परमसत्ता पर,
नित उन्हें सुमिरन करो।
ईश से पाकर आशीष तुम,
दिव्यता धारण करो॥
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