देवी माँ
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'15 Oct 2024 (अंक: 263, द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)
देवी माँ के असली रूप को
भला कौन जान पाया,
जैसा जिसका भाव माँ ने
उसे वैसा रूप दिखाया।
जिस किसी ने भी मातारानी को
जिस भाव से ध्याया,
माँ भवानी ने उसके लिए
उसी रूप को अपनाया।
उनके यथार्थ स्वरूप को
कोई पहचान ना पाया,
सम्पूर्ण ब्रह्मांड उनके ही
मुखाकृति में है समाया।
कभी तो भगवती ने कमल को
अपना आसन बनाया,
कभी अँगूठे से दबाकर जग में
हड़कंप मचाया।
जिसने भी नतमस्तक होकर
जगत जननी को बुलाया,
जगत जननी ने उसे अपना
सौम्य रूप दिखाया।
जब किसी ने अबोध बालक बन
मैय्या-मैय्या बुलाया,
तो मैय्या ने ममतारूपी आँचल में
उसे छुपाया।
लेकिन जिसने आसुरी प्रवृति धर
माता से टकराया,
तो मैय्या ने रौद्र रूप धर उसे
यमलोक पहुँचाया।
कभी कल्पवृक्ष बन माँ ने हमपे
पीयूष बरसाया।
तो कभी बज्र से भी कठोर बन
नीच को मज़ा चखाया।
कभी तो मात ने फूलों से भी
कोमल रूप बनाया,
और कभी काली रूप धर
पूरे विश्व को थर्राया।
देवी माँ के असली रूप को
भला कौन जान पाया,
जैसा जिसका भाव माँ ने
वैसा रूप उसे दिखाया।
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