वन गमन
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
(तंत्री छंद)
जनक दुलारी, हे सुकुमारी,
कैसे तुम, वन को जाओगी।
पंथ कँटीले, अहि ज़हरीले,
कैसे तुम, रैन बिताओगी॥
सुन प्रिय सीते, हे मनमीते,
आप वहाँ, रह ना पाओगी।
विटप सघन है, दुलभ अशन है,
कष्ट सिया, सह ना पाओगी॥
हे रघुनंदन, करती वंदन,
आप बिना, रह ना पाऊँगी।
स्वर्ग वहाँ है, नाथ जहाँ हैं,
चरणों में, शीश झुकाऊँगी॥
मानो कहना, ना मत कहना,
आप संग, वन में जाऊँगी।
चाहे सुख हो, या फिर दुख हो,
मैं हरपल, साथ निभाऊँगी॥
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