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आयो कृष्ण कन्हाई

 

भादों माह कृष्ण अष्टमी को, 
देवकीनंदन जन्म लिए हैं। 
कारागार के बंधन टूटे, 
द्वारपाल सब औंधे पड़े हैं। 
 
लेकर टोकरी में कान्हा को, 
देखो वसुदेव निकल पड़े हैं। 
राह में काले-काले बादल, 
रिमझिम बूँदें बरसा रहे हैं। 
 
नागों के राजा अदिशेष जी, 
सर पे छत्र धराए खड़े हैं। 
कालगंगा भी उफन-उफन कर, 
कान्हा के चरण चूम रहे हैं। 
 
आहिस्ता-आहिस्ता वसुदेव जी, 
अपने क़दम को बढ़ा रहे हैं। 
उस ओर गोकुल में नंदराय, 
मग में नैन टिकाए खड़े हैं। 
 
सम्पूर्ण जगती के प्रतिपालक, 
नंद के अंगना आ रहे हैं। 
मैय्या यशोदा के आँचल में, 
देखो जगदीश समा रहे हैं। 
 
कितना प्यारा अद्भुत नज़ारा, 
देख त्रिदश भी हरस रहे हैं। 
बाल लीला देखने भूतेश, 
नंद के द्वार पर आ खड़े हैं॥

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