पुरुष
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'1 Apr 2024 (अंक: 250, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
यदि तुम विवेक सम्पन्न हो
धर्म की वैज्ञानिकता को समझते हो
अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि करते हो
तो निश्चय ही तुम पुरुष हो . . .
यदि तुम ऊर्ध्वगामी हो
प्राकृतिक संपदा का संवर्धन करते हो
क्षणिक लाभ से दिग्भ्रमित नहीं होते हो
तो निश्चय ही तुम पुरुष हो . . .
यदि तुम सहज व शिष्ट हो
पराक्रमी के साथ-साथ कर्मनिष्ठ हो
आत्म बुद्धि द्वारा विषयों का भोग करते हो
तो निश्चय ही तुम पुरुष हो . . .
यदि तुम अचापल्य हो
अपैशुन, अहिंसक व आर्जव हो
धृति को स्वयं में धारण करते हो
तो निश्चय ही तुम पुरुष हो . . .
क्योंकि तुम पुरुष हो
पुरुषार्थ को धारण करते हो
क्षमाशील जितेन्द्रिय व सत्यप्रतिज्ञ हो
इसलिए तुम पूजनीय हो . . .
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