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ख़ुद को दीप्तिमान कर

शान्ति से सहन कर, अहं का दमन कर, 
बेकार तकरार में, वक़्त न गँवाइए। 
 
आलस्य को तज कर, खड़ा रह डट कर, 
विपरीत धार में भी, आगे बढ़ जाइए। 
 
चल तू सँभल कर, पग रख थम कर, 
लोगों से उलझ कर, ऊर्जा न गँवाइए। 
 
राग-द्वेष त्याग कर, प्रेम का संचार कर, 
अनर्गल प्रलाप से, ख़ुद को बचाइए। 
 
अन्तस् का ध्यान कर, स्वयं का निशान कर, 
चिकनी-चुपड़ी बातों में, होश न गँवाइए। 
 
शक्ति का संचार कर, स्वयं को तैयार कर, 
अमृत पाने के लिए, हाथ तो बढ़ाइए। 
 
स्व की जयगान कर, ज्ञान दीप्तिमान कर, 
चहु दिशाओं में आप, प्रकाश फैलाइए। 
 
चोटी पे पहुँच कर, आसमान को छू कर, 
अपने पीछे वालों का, हौसला बढ़ाइए। 

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