मेरा गाँव
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'1 Jul 2024 (अंक: 256, प्रथम, 2024 में प्रकाशित)
आइए मेरे गाँव में,
अजी बैठिए छाँव में,
प्रकृति के नज़ारे को,
समीप से देखिए।
समृद्ध खलिहान है,
मेहनती किसान हैं,
ताज़ी-ताज़ी उपज का,
आंनद तो लीजिए।
कोलाहल से दूर है,
सुकून भरपूर है,
शीतल ठंडी हवा का,
सेवन तो कीजिए।
सबसे अच्छी बात है,
दादी नानी का साथ है,
मीठे ताल-तलैया का,
अजी जल पीजिए॥
लोग यहाँ के अच्छे हैं,
दिल के बड़े सच्चे हैं,
झूठ और फ़रेब से,
होते कोसों दूर हैं।
सुबह उठ जाते हैं,
भ्रमण कर आते हैं,
अँखियों में इनके तो,
नूर भरपूर है।
सबका आशियाना है,
नहीं कोई बेगाना है,
अपने ही आमोद में,
रहते ये चूर हैं।
सत्य इन्हें भाता है,
दिखावा नहीं आता है,
अपनी धरती माँ पे,
करते ग़ुरूर हैं॥
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