अन्तरजाल पर
साहित्य-प्रेमियों की विश्राम-स्थली

काव्य साहित्य

कविता गीत-नवगीत गीतिका दोहे कविता - मुक्तक कविता - क्षणिका कवित-माहिया लोक गीत कविता - हाइकु कविता-तांका कविता-चोका कविता-सेदोका महाकाव्य चम्पू-काव्य खण्डकाव्य

शायरी

ग़ज़ल नज़्म रुबाई क़ता सजल

कथा-साहित्य

कहानी लघुकथा सांस्कृतिक कथा लोक कथा उपन्यास

हास्य/व्यंग्य

हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी हास्य व्यंग्य कविता

अनूदित साहित्य

अनूदित कविता अनूदित कहानी अनूदित लघुकथा अनूदित लोक कथा अनूदित आलेख

आलेख

साहित्यिक सांस्कृतिक आलेख सामाजिक चिन्तन शोध निबन्ध ललित निबन्ध हाइबुन काम की बात ऐतिहासिक सिनेमा और साहित्य सिनेमा चर्चा ललित कला स्वास्थ्य

सम्पादकीय

सम्पादकीय सूची

संस्मरण

आप-बीती स्मृति लेख व्यक्ति चित्र आत्मकथा यात्रा वृत्तांत डायरी बच्चों के मुख से यात्रा संस्मरण रिपोर्ताज

बाल साहित्य

बाल साहित्य कविता बाल साहित्य कहानी बाल साहित्य लघुकथा बाल साहित्य नाटक बाल साहित्य आलेख किशोर साहित्य कविता किशोर साहित्य कहानी किशोर साहित्य लघुकथा किशोर हास्य व्यंग्य आलेख-कहानी किशोर हास्य व्यंग्य कविता किशोर साहित्य नाटक किशोर साहित्य आलेख

नाट्य-साहित्य

नाटक एकांकी काव्य नाटक प्रहसन

अन्य

रेखाचित्र पत्र कार्यक्रम रिपोर्ट सम्पादकीय प्रतिक्रिया पर्यटन

साक्षात्कार

बात-चीत

समीक्षा

पुस्तक समीक्षा पुस्तक चर्चा रचना समीक्षा
कॉपीराइट © साहित्य कुंज. सर्वाधिकार सुरक्षित

ज़रा रुक

ज़रा रुक ऐ मनुष्य
किसलिए यूँ दौड़ लगाते हो? 
क्षणिक सुख पाने के लिए, 
क्यों अपना सर्वस्व गवाते हो? 
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . . 
 
ज़रा रुक विश्राम कर, 
अपने अंतर्मन का ध्यान कर। 
क्या लेकर आए थे, 
जिसके खोने का है डर? 
क्यों है तू इतना बेकल? 
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
 
ज़रा रुक विचार कर, 
अपने मोह का त्याग कर। 
ख़ाली हाथ ही आए थे, 
ख़ाली हाथ ही जाना है। 
तो क्यों सुबह शाम दौड़ लगाना है? 
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
 
ज़रा रुक ध्यान कर, 
अपने कर्मों का अनुसंधान कर। 
अपना चरित्र निर्माण कर, 
मात पिता को प्रणाम कर, 
और गुरुजनों का सम्मान कर। 
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
 
ज़रा रुक नमन कर, 
मातृभूमि के स्मरण कर। 
ईशदेवो का वंदन कर, 
मानवों का अभिनंदन कर, 
और प्रकृति का संवर्धन कर। 
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
 
ज़रा रुक विचार कर, 
देश के लिए कुछ त्याग कर। 
नूतन अनुसंधान कर, 
वसुधा का कल्याण कर, 
फिर यहाँ से प्रस्थान कर। 
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
 
 कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'

अन्य संबंधित लेख/रचनाएं

'जो काल्पनिक कहानी नहीं है' की कथा
|

किंतु यह किसी काल्पनिक कहानी की कथा नहीं…

14 नवंबर बाल दिवस 
|

14 नवंबर आज के दिन। बाल दिवस की स्नेहिल…

16 का अंक
|

16 संस्कार बन्द हो कर रह गये वेद-पुराणों…

16 शृंगार
|

हम मित्रों ने मुफ़्त का ब्यूटी-पार्लर खोलने…

टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता

ललित निबन्ध

दोहे

गीत-नवगीत

सामाजिक आलेख

किशोर साहित्य कहानी

बच्चों के मुख से

चिन्तन

आप-बीती

सांस्कृतिक आलेख

किशोर साहित्य कविता

चम्पू-काव्य

साहित्यिक आलेख

विडियो

उपलब्ध नहीं

ऑडियो

उपलब्ध नहीं