ज़रा रुक
काव्य साहित्य | कविता कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'15 Oct 2022 (अंक: 215, द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)
ज़रा रुक ऐ मनुष्य
किसलिए यूँ दौड़ लगाते हो?
क्षणिक सुख पाने के लिए,
क्यों अपना सर्वस्व गवाते हो?
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
ज़रा रुक विश्राम कर,
अपने अंतर्मन का ध्यान कर।
क्या लेकर आए थे,
जिसके खोने का है डर?
क्यों है तू इतना बेकल?
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
ज़रा रुक विचार कर,
अपने मोह का त्याग कर।
ख़ाली हाथ ही आए थे,
ख़ाली हाथ ही जाना है।
तो क्यों सुबह शाम दौड़ लगाना है?
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
ज़रा रुक ध्यान कर,
अपने कर्मों का अनुसंधान कर।
अपना चरित्र निर्माण कर,
मात पिता को प्रणाम कर,
और गुरुजनों का सम्मान कर।
इसलिए ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
ज़रा रुक नमन कर,
मातृभूमि के स्मरण कर।
ईशदेवो का वंदन कर,
मानवों का अभिनंदन कर,
और प्रकृति का संवर्धन कर।
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
ज़रा रुक विचार कर,
देश के लिए कुछ त्याग कर।
नूतन अनुसंधान कर,
वसुधा का कल्याण कर,
फिर यहाँ से प्रस्थान कर।
इसलिये ऐ मनुष्य ज़रा रुक . . .
कुमकुम कुमारी 'काव्याकृति'
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